Book Title: Anekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 378
________________ 90 अनेकान्त 67/4, अक्टूबर-दिसम्बर, 2014 नामक कथा ग्रंथ प्राकृत में लिखा, जिसकी भाषा पैशाची कही गयी है। इस तरह इस युग के साहित्य में प्रमुख रूप से जिन तीन प्राकृत भाषाओं का प्रयोग हुआ है वे हैं-i. महाराष्ट्री ii. मागधी iii. पैशाची। i. महाराष्ट्री प्राकृत - महाराष्ट्र प्रान्त की जनबोली से विकसित प्राकृत का नाम महाराष्ट्री प्रचलित हुआ है। इसने मराठी भाषा के विकास में भी योगदान किया है। महाराष्ट्री प्राकृत के वर्ण अधिक कोमल और मधुर प्रतीत होते हैं, अतः विशेष रूप से यह प्राकृत काव्यों की भाषा बनकर हमारे सम्मुख आई।१३ ii. मागधी मगध प्रदेश की जनभाषा को सामान्य तौर पर मागधी प्राकृत कहा गया है। मागधी राज भाषा थी, अतः इसका सम्पर्क भारत की अनेक बोलियों के साथ हुआ।इसलिसे पालि, अर्धमागथी आदि प्राकृतों के विकास में मागधी प्राकृत को मूल माना जाता है। इसमें अनेक लोक भाषाओं का समावेश है। मागधी का प्रयोग अशोक के शिलालेखों में हुआ है और नाटककारों ने अपने नाटकों में इसका प्रयोग किया है।१४ iii. पैशाची प्राकृत देश के उत्तर-पश्चिम प्रान्तों के कुछ भाग को पैशाच देश कहा जाता था। वहाँ पर विकसित इस जनभाषा को पैशाची कहा गया है। प्राकृत भाषा से समानता होने के कारण पैशाची को भी प्राकृत का एक भेद मान लिया गया है। इस भाषा में बृहत्कथा को लिखा गया, किन्तु वह मूल रूप से प्राप्त नहीं है। उसके रूपान्तर प्राप्त हैं, जिस से मूल ग्रन्थ का महत्त्व सिद्ध होता है।५ इस प्रकार मध्ययुग में प्राकृत भाषा का जितना विकास हुआ, उतनी ही उसमें विविधता आयी। प्राकृत के वैयाकरणों ने साहित्य के प्रयोगों के आधार पर महाराष्ट्री प्राकृत के व्याकरण के कुछ नियम निश्चित कर दिये। उन्हीं के अनुसार कवियों ने अपने ग्रन्थों में महाराष्ट्री प्राकृत का प्रयोग किया। उसका जन जीवन से सम्बन्ध घटता चला गया और वह साहित्य की भाषा बन कर रह गयी। अपभ्रंश युग ः प्राकृत एवं अपभ्रंश इन दोनों भाषाओं का क्षेत्र प्रायः एक जैसा था। दोनों भाषाएं जनबोलियों से विकसित हुई हैं। दोनों ही स्वतन्त्र भाषाएं हैं। दोनों का अपना पृथक् अस्तित्व है। प्राकृत में सरलता की दृष्टि से जो बाधा रह गयी

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