Book Title: Anekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 347
________________ अनेकान्त 67/4 अक्टूबर-दिसम्बर, 2014 59 श्रावक कर्म उत्पन्न होने पर ब्राह्मण अर्थात् माहण की उत्पत्ति हुई। ब्राह्मण से त्याग, कर्तव्यपरायणता, साधना तथा बौद्धिक श्रेष्ठता की अपेक्षा की जाती थी। वह राज्य तथा समाज के हित के लिए धार्मिक क्रियाओं को संपन्न करता था तथा साधना और तपश्चर्या द्वारा समाज का मार्ग निर्देशन करता था। यह वर्ण अत्यन्त सरल स्वभावी तथा धर्मप्रेमी था इसलिए जब किसी को मारते पीटते देखते तो कहते थे मा हण तभी से ये माहण ब्राह्मण भी कहे जाने लगे। ब्राह्मण वर्ण यज्ञोपवीत धारण करता था तथा गर्भान्वय, कर्मान्वय तथा दीक्षान्वय क्रियाओं को करने वाला था । कहकोसु में ब्राह्मण वर्ण को पुरोहित के रूप में भी स्वीकार किया है। जिसमें कल्लासमित्र की कथा में शिवभूति पुरोहित नाम आता है। मित्र प्रेम व गुरुभक्ति मित्र का महत्व जीवन में असन्दिग्ध है। 'सत्संगति कथय किं न करोति पुंसामः।' मित्र वह होता है जो गुणों को तो प्रकट है तथा दोषों को छिपाता है। अच्छे मित्र की संगति बुद्धि, यश, धन, सत्य, प्रसिद्धि हृदय में प्रसन्नता इत्यादि गुणों को प्रकट करती है । कहकोसु में मित्रता के लिए वारिषेण राजकुमार और उनका मित्र पुष्पडाल का नाम आता है तथा सोमदत्त मुनि और हरिदत्त की मित्रता तथा दुष्ट मित्रता के उदाहरण में बलि, प्रह्लाद, नमुचि, , बृहस्पति इन चार मंत्रियों का नामोल्लेख किया है जिसमें यह चारों सभी प्रकार के निंदनीय कार्य साथ में करते हैं - स्त्रीवर्ग में भी अंतरंग सखियाँ होती थी तथा एक सखी से अपने हृदय में स्थित सभी प्रकार की गूढ से गूढ बात कर मन का बोझ हलका कर लेती थी। श्रीचंद्र मुनि ने इसका वर्णन दस संधियों के अतिरिक्त संधियों में किया है । उसमें सेठ सुदर्शन की कथा का वर्णन आता है जिसमें रानी की सखी का उल्लेख प्राप्त होता है।" - गुरु भक्ति गुरु चिरकाल से ही पूजनीय रहे हैं। जैन परम्परा में गुरुओं का नाम देवशास्त्र के बाद लिया जाता है। अतः मुनि श्रीचंद्र ने भी गुरुओं का आख्यान किया है। गुरुओं के संबंध में कहकोसु में जो कथानक आये हैं उनसे यह ध्वनित होता है कि मुनि श्रीचंद्र ने दो प्रकार के गुरुओं का नाम दिया है, प्रथम दीक्षा गुरु अर्थात् निर्ग्रन्थ दिगम्बर साधु तथा दूसरे शिक्षा गुरु जो राजमहलों में राजकुमारों की शिक्षा पूर्ण करते थे । प्रथम निर्ग्रथ गुरुओं के कथानक में रेवती

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