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अनेकान्त 67/4, अक्टूबर-दिसम्बर, 2014 क्षत्रिय धर्म के दर्शन वारिषेण मुनि के कथानक में राजा श्रेणिक द्वारा चोरी के अपराध में वारिषेण को बिना पुत्र मोह के मृत्यु दण्ड देना है। द्वितीय दृष्टांत अंजनचोर के कथानक में अंजन चोर का सैनिकों के द्वारा पीछा किया गया तथा तृतीय दृष्टांत में हरिषेण चक्रवर्ती का युद्ध वर्णन प्राप्त होता है जिसमें वह क्षत्रिय धर्म का पालन करता हुआ दुष्टों पर विजय प्राप्त कर सज्जनों की रक्षा करता है। चतुर्थ कथानक में विष्णुकुमार मुनि कथा में राजा द्वारा चार मंत्रियों को नगर से निकाले जाने की सजा सुनाना है। इस प्रकार कहकोसु में क्षत्रिय धर्म का वर्णन प्राप्त होता है। वैश्य -
वैश्य अपने उदर की पूर्ति के साथ-साथ समाज की अर्थव्यवस्था एवं भरण-पोषण का भार वहन करते थे। वैश्य वर्ण के द्वारा ही राज्य को आर्थिक सुदृढ़ता प्राप्त होती थी। एक स्थान से दूसरे स्थान को वस्तुओं का आयात निर्यात कर प्रजा के जीवन में सुख का संचार करना चाहिए। जो व्यक्ति प्रस्तुत कार्य के लिए सन्नद्ध हुए वह वैश्य की संज्ञा से अभिहीत किए गए। कहकोसु से सोमदत्त मुनि की कथा में वैश्य वर्ण के दिग्दर्शन होते हैं। जहाँ पर सोमदत्त से व्यापार के लिए कुछ धन उधार माँगा था तथा मुनि बनने के बाद सोमदत्त मुनि से हरिदत्त अपना धन वापस करने को कहता है। अन्य बहुत से स्थानों पर वैश्य वर्ण का उल्लेख मिलता है। सूरमित्र की कथा में दोनों वणिक पुत्रों का महारत्न के लिए विदेश गमन का वर्णन वैश्य कुल की द्योतक है। शूद्र -
श्री ऋषभदेव ने मानवों को यह प्रेरणा दी कि कर्म युग में एक दूसरे के सहयोग के बिना कार्य नहीं हो सकता। अतः सेवाभावी व्यक्ति शूद्र कहलाया। जिस प्रकार शरीर का सारा भार पैरों पर होता है उसी प्रकार शूद्र वर्ण पर समाज की सेवा का पूरा-पूरा भार होता था। कहकोसु में श्रुतविनय के आख्यान में विद्याधर युगल के द्वारा मातंग का वेष धारण करना, विष्णु पद्युम्न कथानक में चाण्डान का कथन, उस समय जाति के सदभाव का द्योतक है। ब्राह्मण -
वैदिक संस्कृति ब्राह्मण वर्ण को प्रथमतः स्वीकार करती है लेकिन श्रमण संस्कृति में सर्वप्रथम क्षत्रिय वर्ण को माना गया। भरत के राज्यकाल में