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अनेकान्त 67/4, अक्टूबर-दिसम्बर, 2014 करना भी एक प्रकार की क्रिया है और कारागार की सजा इस क्रिया का फल है। वेतन-रूप या कारावास-रूप फल यूनिवर्सल फल नहीं है। नौकरी करने का वेतन और चोरी करने का कारागार का दण्ड भिन्न-२ देशों में भिन्न-२ है और वे भूतकाल में आज से भिन्न थे और भविष्य में भी भिन्न होंगे। इस प्रकार के फल यूनिवर्सल नहीं है; ये दृष्ट फल हैं जो मनुष्यकृत नियमों द्वारा नियंत्रित होते हैं, कर्म सिद्धांत द्वारा नहीं।
___कर्म सिद्धान्त का प्रयोजन केवल यूनिवर्सल अदृष्ट फल से है जो प्रत्येक क्रिया के अवश्य होते हैं। नौकरी और चोरी करने की क्रिया के अदृष्ट फल भी हैं। प्राणियों को अदृष्ट फल ‘बंधने' वाले कर्मों के रूप में उपलब्ध होते हैं। प्राणी इन कर्मों का फल भविष्य में भोगते हैं। कर्मो का उपादान कारण कार्मण स्कंध हैं और निमित्त कारण अदृष्ट फल हैं। कार्मण स्कंध यूनिवर्सल होते हैं; ये भी स्थान और समय पर निर्भर नहीं होते। कर्मों के दोनों कारण (उपादान और निमित्त), यानी कार्मण स्कंध और अदृष्ट फल, यूनिवर्सल हैं, इसलिए कर्म भी यूनिवर्सल होते हैं, अर्थात् कर्म केवल क्रिया पर निर्भर होते हैं, क्रिया के स्थान और समय पर नहीं। क्रिया योग-एवं-मोह द्वारा परिचालित प्रक्रिया है। योग की तीव्रता कर्मों के प्रदेश और प्रकृतियाँ नियंत्रित करती है। मोह की तीव्रता कर्मो की स्थिति और अनुभाग नियंत्रित करती है। इसलिए कर्म केवल क्रिया, यानी योग-एवं-मोह, पर निर्भर होते हैं, क्रिया के स्थान और समय पर नहीं।
हम एक और क्रिया का उदाहरण देंगे जिसका कोई दृष्ट फल नहीं है, केवल अदृष्ट फल है। मान लो किसी ने अपने एक शत्रु की हत्या करने का निर्णय लिया। वह हत्या की योजना बनाने में कई दिवस व्यतीत करता है। जिस दिन वह शत्रु की हत्या करने वाला था, उसे पता चला कि शत्रु देश छोड़कर कहीं चला गया है और वह उसकी हत्या नहीं कर पाया। क्या उसे हत्या की योजना बनाने की क्रिया का फल मिलना चाहिए? हत्या की योजना बनाना एक प्रकार की क्रिया है और इस क्रिया का भौतिक प्रमाण नहीं है, इसलिए इस क्रिया के फल का मनुष्यकृत नियमों से कोई प्रयोजन नहीं है। इस प्रकार की क्रिया के कोई दृष्ट फल नहीं है; इसके केवल अदृष्ट फल हैं जो कर्मों के रूप में आत्मा से बंध जाते हैं। हम यह मानकर दूसरों के बारे में बुरा-भला सोचते रहते हैं कि इन क्रियाओं का कोई फल नहीं है। परन्तु ऐसा