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अनेकान्त 67/4, अक्टूबर-दिसम्बर, 2014
स्तुति वंदना
यही है महावीर-सन्देश
विपुलाचल पर दिया गया जो प्रमुख धर्म-उपदेश।। यही०।। सब जीवों को तुम अपनाओ, हर उनके दुख-क्लेश। असद्भाव रखो न किसी से, हो अरि क्यों न विशेष।।१।। घृणा पाप से हो, पापी से नहीं कभी लव-लेश। भूल सुझा कर प्रेम-मार्ग से, करो उसे पुण्येश।।२।। तज एकान्त- कदाग्रह-दुर्गुण, बनो उदार विशेष। रह प्रसन्नचित सदा, करो तुम मनन तत्त्व-उपेदश।।३।। जीतो राग-द्वेष-भय-इन्द्रिय-मोह-कषाय अशेष। धरो धैर्य, समचित्त रहो, औ' सुख-दुख में सविशेष।।४।। अहंकार-ममकार तजो, जो अवनतिका विशेष। तप-संयम में रत हो, त्यागो तृष्णा-भाव अशेष।।५। 'वीर' उपासक बना सत्य के, तज मिथ्याऽभिनिवेश। विपदाओं से मत घबराओ, धरो न कोपावेश।।६।।
सादा रहन-सहन-भोजन हो, सादा भूषा-वेष। विश्व-प्रेम जाग्रत कर उर में, करो कर्म निःशेष।।७।। हो सबका कल्याण, भावना ऐसी रहे हमेश। दया-लोक-सेवा-रत चित हो, और न कुछ आदेश।।८।।
यही है महावीर-सन्देश, विपुला० ।
- जुगलकिशोर मुख्तार ‘युगवीर'