Book Title: Anekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 335
________________ 47 अनेकान्त 67/4, अक्टूबर-दिसम्बर, 2014 साथ-साथ होने वाली तीनों प्रक्रियों के कारण जीव की आत्मा, भौतिक शरीर और कार्मण शरीर की पर्यायों में परिवर्तन होता रहता है। क्रिया करने के लिए साधन / निमित्त आवश्यक है। बिना साधन के क्रिया संभव नहीं है। उदाहरणार्थ, तुम्हारी इस लेख को पढ़ने की क्रिया कामूल साधन यह लेख है, जिसके बिना तुम इस लेख को पढ़ने की क्रिया नहीं कर सकते। इस लेख को तैयार करने लिए द्रव्य और उनकी पर्याय (भाव) और इस लेख को पढ़ने का यह क्षेत्र और काल, यानी, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव, ये सब गौण साधन हैं। इन मूल और गौण साधनों के बिना शेष पढ़ने की क्रिया संभव नहीं है। भिन्न-भिन्न क्रियाओं के लिए भिन्न-भिन्न मूल और गौण साधन आवश्यक हैं। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव के साथ-साथ भोजन करने की क्रिया का मूल साधन भोजन की सामग्री है; सुखी होने की क्रिया का मूल साधन धन-दौलत है; और दुःखी होने की क्रिया का मूल साधन प्राकृतिक विपदा है, इत्यादि । प्राणी की क्रिया के दो घटक हैं। एक घटक है मन, वचन और काय की भौतिक क्रिया, जिसे योग कहते हैं । दूसरा घटक है कषायादि द्वारा परिचालित आत्मिक क्रिया जिसमें भावना, अभिप्राय, इच्छा, इत्यादि निहित है और जिसे मोह कहते हैं। क्रिया योग एवं मोह द्वारा परिचालित एक प्रक्रिया है । जीव का शरीर असंख्यात कोशिकाओं से बना है जो सदैव गतिशील रहती है। लोक का संपूर्ण रिक्त स्थान कार्मण स्कंध से ठसाठस भरा है और कार्मण स्कंध कोशिकाओं से अधिक सूक्ष्म होने के कारण आसानी से कोशिकाओं में प्रवेश और उनमें से निकासी करते रहते हैं । सदैव गतिशील कोशिकाएँ प्रवेश करने वाले कार्मण स्कंधों से टकराती रहती हैं और उनसे संपर्क करती रहती हैं। कोशिकाओं के संपर्क में आये कार्मण स्कंध आत्मा के संयोग में आते रहते हैं। कोशिकाओं के संपर्क में आये कार्मण स्कंधों की मात्रा कोशिकाओं के स्पंदन की प्रबलता पर निर्भर करती है। कोशिकाओं का स्पंदन प्राणी के मन, वचन और काय की भौतिक क्रियाएं, यानी योग नियमन करता है। जब जीव अधिक उत्तेजित होता है, तब उसे योग की गति तीव्र हो जाती है और उसके साथ-साथ कोशिकाओं का स्पंदन भी प्रबल हो जाता है, जिसके कारण कार्मण स्कंध अधिक मात्रा में कोशिकाओं के संपर्क और आत्मा के संयोग में आते हैं। इसके विपरीत जब जीव ध्यान (मैडीटेशन)

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