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अनेकान्त 67/4, अक्टूबर-दिसम्बर, 2014 बुंदेलखण्ड में 'अन्थउ' शब्द का प्रयोग सूर्यास्त पूर्व भोजन करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। यह अणथम शब्द का अपभ्रंश है।२०
सूर्यास्त के बाद भोजन करने वालों को सूर्यद्रोही कहा है।
यो मित्रेऽस्तंगते रक्ते विदध्यादभोजनं जन। तद् द्रोही स भवत्पाप शवस्योपरिचाशनम्।।२६।।१ घड़ी दोय जब दिन चढ़े, पिछलो घटिका दोय।
इतने मध्य भोजन करे, निश्चय श्रावक होय।।१३।।२२ (१) सूर्य प्रकाश पाचन शक्ति का दाता है। वैज्ञानिक अनुसंधानों का यह निष्कर्ष है कि दिनचर वर्ग के मनुष्य आदि का पाचन तंत्र सूर्य के वास्तविक प्रकाश में सक्रिय रहता है। रात्रि के समय हृदय और नाभि कमल संकुचित हो जाने से भुक्त पदार्थ का पाचन गड़बड़ हो जाता है। भोजन करके सो जाने पर संकुचन और अधिक हो जाता है और निद्रा में आ जाने से पाचन शक्ति अत्यन्त क्षीण हो जाती है। (२) वैज्ञानिकों ने विभिन्न भोज्य पदार्थों के पाचन का समय खोजा है। रेशेदार हरी सब्जियाँ इस अर्थ में सुपाच्य हैं कि पाचनतंत्र इन्हें २ से ३ घंटे में पचा लेता है। वहीं दाल इत्यादि के पाचन में ३ से लेकर ५ घंटे तक लगते हैं। आरोग्य शास्त्र में भी भोजन करने के बाद तीन घंटे नहीं सोना चाहिए। दूसरे शब्दों में रात्रि शयन से न्यूनतम ३ घंटे पहले भोजन कर लेना चाहिए। (३) दश्य सर्य प्रकाश में उपस्थित इन्फ्रारेड और अल्टावायलेट किरणों के गर्म स्वभाव के कारण भोजन को पचाने में अतिरिक्त मदद मिलती है। (४) सूर्यग्रहण के समय इन्फ्रारेड और अल्ट्रावायलेट किरणों का अभाव रहता है। अतः सूर्यग्रहण के काल में भोजन का निषेध उचित है।
निष्कर्ष यही है कि दिन के शुद्ध वायुमंडल में किया गया भोजन स्वास्थ्यकर और पोषण युक्त होता है।
जैनधर्म की प्रकृति के साथ तादात्म्य की अनोखी प्रस्तुति है। सर्वज्ञ महावीर ने जब प्रकृति को निहारा तो उन्होंने पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति सभी में जीवन का स्पंदन होते देखा। इसी आधार पर आचार्य उमास्वामी ने 'तत्त्वार्थसूत्र' में एक सूत्र दिया- “ परस्परोपग्रहो जीवानाम् ।।५/२९।।२३ इस अमर सूत्र का मूलमंत्र शाकाहार में छुपा हुआ है और अहिंसा की मान प्रतिष्ठा का सरल, स्वास्थ्यवर्धक आहार शाकाहार है।