Book Title: Anekant 2014 Book 67 Ank 01 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 326
________________ अनेकान्त 67/4 अक्टूबर-दिसम्बर, 2014 38 आहार ग्रहण का उचित समय : मनुष्य के सभी दैनंदिन कार्य प्रकृति से तादात्म्य बनाए रखते हुए संचालित होते हैं। वास्तविक सूर्योदय से पूर्व नित्यकर्म से निवृत्त हो जाना चाहिए। श्रावक के लिए आहार ग्रहण का समय, वास्तविक सूर्योदय के पश्चात् एवं वास्तविक सूर्यास्त के पूर्व है। प्रकाश की संपूर्ण आंतरिक परावर्तन की घटना के (Total internal reflection of light) कारण अपने वास्तविक उदयकाल से २ घड़ी अर्थात् ४८ मिनट पूर्व ही सूर्य की पूर्व दिशा में दिखने लगता है, वह वास्तविक सूर्य नहीं होता है बल्कि उसका आभासी प्रतिबिंब दिखाई देता है। इसी प्रकार वास्तविक सूर्य डूब जाने के बाद भी दो घड़ी या ४८ मिनट तक उसका आभासी प्रतिबिंब आकाश में दिखाई देता रहता है। सूर्य के इस आभासी प्रतिबिंब में दृश्य किरणों के साथ अवरक्त लाल किरणें एवं अल्ट्रा वायलेट किरणें नहीं होती हैं। वे केवल सूर्योदय के ४८ मिनट बाद आती हैं और सूर्यास्त के ४८ मिनट पूर्व ही समाप्त हो जाती है ।" जिस प्रकार एक्सरे मांस और चर्म को पार कर जाती है उसी प्रकार उक्त दोनों प्रकार की किरणें कीटाणुओं के भीतर प्रवेश कर उन्हें नष्ट करने की शक्ति रखती है। यही कारण है कि दिन में सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति नहीं होती । ९ उपरोक्त संदर्भों से यह सहज निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि केवल अवरक्त लाल किरणों (इंफ्रारेड) और अल्ट्रावायलेट किरणों की उपस्थिति में ही सूक्ष्म जीवों की या तो उत्पत्ति नहीं होती है या अपवाद रूप सूक्ष्म जीवों की न्यूनतम हुई उत्पत्ति स्वतः नष्ट हो जाती है। जैसा कि उपरोक्त संदर्भों में कथन है कि उक्त दोनों प्रकार की किरणें केवल सूर्योदय के ४८ मिनट बाद आती हैं और सूर्यास्त के ४८ मिनट पूर्व ही समाप्त हो जाती है। शेष किसी भी समय, किसी भी तरह के प्रकाश में उक्त दोनों तरह की किरणें उपलब्ध नहीं रहती । कृत्रिम तेज प्रकाश जैसे सोडियम, लैंप, मर्करी लैंप, आर्कलैंप से निकलने वाले प्रकाश का यदि वर्णक्रम देखें तो उनमें भी ये दोनों किरणें नहीं पाई जाती है। इस तरह पूर्णतः शुद्ध और सात्विक आहार तैयार करने के समय के साथ-साथ, भोजन करने के समय का भी समय निश्चित हो जाता है।

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