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अनेकान्त 67/4 अक्टूबर-दिसम्बर, 2014
एक वस्तु में नित्य और अनित्य आदि मानने पर उभय, विरोध, वैयाधिकरण, शंकर, व्यतिकर, संशय, अनवस्था और अप्रतिपत्तिक इन आठ दोषों के आने का प्रसंग उपस्थित होता है। आचार्य इसका समाधानपूर्वक उत्तर देते हैं कि प्रमाण ज्ञान की प्रधानता से एक वस्तु में नित्यत्व और अनित्यत्व दोनों से तीसरी ही जाति की नित्यानित्यात्मक प्रतीति हो जाती है। इसलिए उभय, विरोध आदि दोष नहीं आते हैं। नित्य, अनित्य दोनों प्रतिकूल धर्मों को एक वस्तु रूप मानना उभय दोष है । नित्य, अनित्य आदि दो रूपों का एक अभिन्न वस्तु में होना असंभव है, यह विरोध दोष है। ये दोनों दोष वस्तु को प्रमाण से सकलादेशी मानने पर सत्, उत्पाद, व्यय, ध्रौव्यात्मक सिद्ध हो जाता है । इसलिए उभय और विरोध दोष नहीं आ सकते, क्योंकि अनेकान्तात्मक सत् सर्वथा नित्य और सर्वथा अनित्य दोनों दूषित एकान्तों से रहित अलग तरह का नित्यानित्यात्मक है । नित्य अन्तिय का एकत्र उपालम्भ हो जाने से विरोध दोष भी नहीं है। तीसरी ही जाति वाली नित्यानित्यात्मक वस्तु सिद्ध हो जाने से अनवस्था, वैयधिकरण, संकर और व्यतिकर दोष भी नहीं आ सकते। वस्तु की समीचीन प्रतिपत्ति होने से अप्रतिपत्ति दोष भी नहीं आता है।९ गुण और पर्याय युक्त द्रव्य :
'गुणपर्ययवद् द्रव्यम् को भी सूत्रकार ने द्रव्य कहा है । वार्तिककार ने‘द्रव्य' शब्द की निरुक्ति करते हुए लिखा है कि 'द्रवतिद्रोष्यत्यदुद्रुवत्तांस्तान् पर्यायानिति द्रव्यमित्यपि न विरुध्यते ।' अर्थात् जो अपनी उन उन पर्यायों का वर्तमान में द्रवण कर रहा है, भविष्य में द्रवण करेगा और जो भूतकाल में द्रवण कर चुका है, वह द्रव्य है । द्रव्य स्वभाव से ही तीनों काल अपनी तदात्मक पर्यायों में द्रवण करती रहती है । द्रव्य में पर्यायों का सामान्य की अपेक्षा नित्य योग है, इसमें कोई विरोध नहीं है । विशेष की अपेक्षा पर्यायों का नित्य ही योग नहीं है, उनका कदाचित् होना ही सिद्ध है । २९ ' द्रव्य' को परिभाषित करते हुए सूत्रकार के ‘द्रव्याणि’२२ सूत्र की व्याख्या में भी भाष्यकार ने स्पष्ट करते हुए लिखा है कि 'दु गतौ - धातु से कर्म और कर्ता में 'यत्' प्रत्यय करने पर द्रव्य 'द्रु शब्द सुघटित हो जाता है। स्व और पर कारणों से उत्पाद और व्यय रूप पर्यायों को जो प्राप्त हो वह द्रव्य है । 'दूयते'- बहाये जा रहे गमन कर रहे हैं, जो वह द्रव्य है एवं द्रव्य स्वतंत्र होकर पर्यायों को द्रवण करते हैं-प्राप्त करते हैं। द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव प्रत्यय पर हैं तथा अपनी स्वाभाविक शक्ति स्व प्रत्यय
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