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अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014
अनेकान्त का हर अंक शोधालेखों के कारण सुरक्षित रखता हूँ जो समय समय पर मुझे कई प्रश्नों के उत्तर संदर्भ सहित देते हैं। अप्रैल-जून १४ (६७/२) अंक प्राप्त हुआ। प्रकाशित लेखों की छटा निराली व उच्चकोटि की है। डॉ. जयकुमार जैन का सम्पादकीय लेख-आज के मुनि संघों में व्याप्त शिथिलाचार का कटु परन्तु सत्य बोध कराता है। लेखक के सुझाये हल सरल व उपयोगी हैं। प्राचार्य निहालचंद जैन का लेख जनसाधारण को महान ग्रन्थ 'पुरुषार्थसिद्धयुपाय' का सटीक व सरल परिचय कराता है। संपादक मण्डल बधाई के पात्र हैं।
- राजकुमार जैन, से.नि. ग्रुप कैप्टन
(भारतीय वायुसेना), पुण
(मो. 09370374391)
अनेकान्त का विगत अंक (अप्रैल-जून २०१४) में संपादकीय लेख जिसमें श्रमणचर्या की विसंगतियों पर प्रकाश डाला है, से मैं पूर्ण सहमत हूँ। व्यक्ति पूजा का विरोधी जैनधर्म आज परिग्रह से पीड़ित, परिषहों से वंचित, श्रावकाचार से भी शिथिल परन्तु स्वयं को भगवान कहलाने में आनंदित अनुभव करने वाले संतों से आक्रान्त है। मेरी भावना के सुन्दर एवं निःशुल्क प्रकाशन हेतु साधुवाद। मेरी भावना मध्यप्रदेश में कक्षा सात की पाठ्य पुस्तक में प्रार्थना के रूप में शामिल की गई है। अनेकान्त का प्रकाशन अभूतपूर्व है। वीरसेवा मंदिर से प्रकाशित पं. जुगलकिशोर मुख्तार 'युगवीर' के विचारों से बहुत प्रभावित हूँ जिन्होंने वीर सेवा मंदिर की स्थापना करके एक महान कार्य किया। अनेकान्त देश की प्रमुख शोध पत्रिका है, इसके लिए मैं अपनी शुभकामनाएं एवं बधाई भेज रहा हूँ।
- अजित जैन 'जलज' अध्यापक
प्रांतीय संयोजक, करुणा इण्टरनेशनल, टीकमगढ (म.प्र.)-४७२००१ मो. 91+99265 65711
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