________________
अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014 सातवां शास्त्र सहित स्थापना (भद्रासन) तथा आठवां प्रतीक एक खण्डित त्रिरत्न प्रतीत होता है।
इस प्रकार निष्कर्षतः मथुरा के पुरातत्त्व में जैन प्रतीकों का महत्वपूर्ण पुरातात्त्विक साक्ष्य प्राप्त होता है; जो प्रतीक कला को विविध आयाम से जोड़ने का कार्य करता है। प्रतीकों के माध्यम से कला की अभिव्यक्ति मथुरा कला की अनूठी देन है। संदर्भ : १. मनुस्मृति, २, १९, सं. गोपालशास्त्री नेने, वाराणसी, १९३५ २. विष्णु पुराण, १/१२/४, गीता प्रेस, गोरखपुर, १९७३ ३. मैक्रिण्डिल, एज डिस्क्राइब्ड बाई टालेमी, पृ. ४२, कलकत्ता, १९२७ ४. इण्डियन एण्टिक्वेरी, सं. २०, पृ. ३७५ ५. लेग्गे, जेम्स, दि ट्रैवेल्स ऑव फाहयान, पृ. ४२, दिल्ली, १९७२ ६. वाटर्स, थामस, आन-युवान च्यांग्स ट्रैवेल्स इन इण्डिया, भाग-१, पृ. ३०१, दिल्ली-, १९६१ ७. जैकोबी, हरमन, सैक्रेड बुक्स ऑव दि इस्ट, भाग-४५, पृ. ११२ ८. मनुस्मृति, २/१८-२० ९. रामायण, उत्तरकाण्ड, सर्ग ६२, पंक्ति १७ १०. वाजपेयी, कृष्णदत्त, भारत के सांस्कृतिक केन्द्र मथुरा, पृ. २ ११. हेमचन्द्राचार्य, अभिधानचिंतामणि, पृ. ३९०, सं. हरगोविंददास बेचरदास तथा मुनिजिनविजय,
भावनगर, भाग-१, १९९४ १२. इण्डियन एण्टिक्वेरी, जिल्द २०, पृ. ३७५ १३. ल्यूडर्स लिस्ट, सं. १३४५, पृ. १६५, सं. ९३७, पृ. ९५ १४. वाजपेयी, कृष्णदत्त, पूर्वोक्त, पृ.३ १५. प्लिनी, नैचुरल हिस्ट्री, भाग-६, पृ. १९, कनिंघम, ए०, दि ऐश्येन्ट ज्यॉग्राफी ऑव इण्डिया,
पृ. ३१५, वाराणसी, १९६३ १६. कनिंघम, पूर्वोक्त १७. कनिंघम, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑव इण्डिया, वार्षिक रिपोर्ट, भाग-३, पृ. १३, वाराणसी,
१९६३. १८. ग्राउस, एफ० एस०, मथुरा : डिस्ट्रिक्ट मेमोआर, पृ. ४०, मथुरा, १८८० १९. फ्यूरर, ए०, आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑव इण्डिया, नार्थ-वेस्टर्न प्राविन्सेज एण्ड अवध,
भाग-६, इलाहाबाद, १८९१ २०. ऋग्वेद, ७,३६ चौखम्बा संस्कृत सीरिज, वाराणसी, १९६६ २१. शतपथ ब्राह्मण; १४,४,३,७, सं. वेबर, लिपजिंग, १९२४