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अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014 घटना एवं पूर्व भवों को सुना। कुछ समय पश्चात् हेमाभनगर में जीवन्धर कुमार का अपने मित्र के साथ मिलन हुआ।
जीवन्धर कुमार के मित्रों ने जीवन्धर कुमार को उनकी माता गन्धर्वदत्ता से मिलाया इसी समय सुदर्शन यक्ष (जिसको णमोकार मंत्र सुनाया था) ने बड़ा उत्सव किया। माता गन्धर्वदत्ता ने जीवन्धर कुमार को आशीर्वाद देते हुए कहा कि बेटा काष्ठांगारिक ने तेरे पिता को मारकर तेरा राज्य छीन लिया है तू उसे अवश्य प्राप्तकर। इस प्रकार जीवन्धर कुमार माता को सांत्वना देकर राजपुर नगर वापिस आ गये कुछ दिन राजपुर नगर में अज्ञातवास व्यतीत कर विजयागिरि नामक हाथी पर बैठकर गन्धोत्कट के घर प्रवेश किया।
इसी समय राजा गोपेन्द्र ने अपनी कन्या का स्वयंवर रचा और जीवनधर कुमार ने चन्दकवेध का वेध दिया इससे काष्ठांगारिक कुपित हो गया तथा जीवन्धर कुमार पर आकमण की तैयारी करने लगा। इधर जीवन्धर कुमार ने सभी सामंतो के पास पत्र भेजकर अपना परिचय दिया तथा सभी सामंतो को अपनी ओर करके काष्ठांगारिक को मारकर अपना राज्य प्राप्त कर लिया और माता विजया तथा आठों रानियाँ सुख पूर्वक अपना समय व्यतीत करने लगीं।
___एक बार जीवन्धर कुमार ने सुरमलय नामक उद्यान में वरधर्म नामक मुनिराज से धर्म का स्वरूप सुना और व्रत लेकर सम्यग्दर्शन को निर्मल किया। नन्दाढ्य आदि भाईयों ने भी यथा संभव व्रत ग्रहण किये। तदनन्तर अशोक वन में दो बन्दरों को लड़ते हुए देखकर संसार से विरक्त हो गये वहीं इन्होंने प्रशान्तवंक नामक मुनिराज से अपने पूर्वभव सुने और उसी समय सुरमलय नामक उद्यान में भगवान महावीर का समवसरण आया है ऐसा जानकर वैभव के साथ वहाँ गये और गन्धर्वदत्ता के पुत्र वसुन्धर कुमार को राज्य दे नन्दाढ्य आदि के साथ दीक्षा धारण कर ली महादेवी विजया एवं गन्धर्वदत्ता आदि रानियों ने भी चन्द्रना आर्यिका के पास दीक्षा ले ली। सन्दर्भ : १. गद्यचिन्तामणि आचार्य वादीभसिंह भारतीय ज्ञानपीठ दिल्ली, पृष्ठ १४
३. भगवान महावीर और उनकी आचार्य परम्परा भारतीय ज्ञानपीठ दिल्ली १४ ४. भगवान महावीर और उनकी आचार्य परम्परा भारतीय ज्ञानपीठ दिल्ली १८