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अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014
५. भगवान महावीर और उनकी आचार्य परम्परा भारतीय ज्ञानपीठ दिल्ली ६. गद्यचिंतामणि प्रस्तावना , ७.भोजप्रबन्ध
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९. गद्यचिंतामणि १०. रघुवंश सर्ग -१७ श्लोक -२४ ११. क्षत्रचूडामणि लम्ब ११ श्लोक ४ १२ रघवंश सर्ग १७ श्लोक ४९ १३. क्षत्रचूडामणि लम्ब ११श्लोक ७ १४. रघुवंश सर्ग १ श्लोक ३० १५. क्षत्रचूडामणि लम्ब ११ श्लोक ९ १६. नीतिवाक्यामतिम् श्लोक २? १७. क्षञ्चूडामणि प्रस्तावना ८ पण्डित टोडरमल स्मारक भवन जयपुर १८. वैराग्यशतक श्लोक १२ १९. ज्ञानार्णव शुभचंदाचार्य श्री परमश्रुत प्रभावना ट्स्ट जयपुर
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२१. नीतिवाक्यामृतम् पृ. ५० विजयाग्रन्थ प्रकाशन समिति। २२. "
७१ २३. , संस्कृत सूक्ति साहित्य में क्षत्रचूड़ामणि का स्थान व मूल्यांकन : सूक्ति- सूक्तियाँ साहित्य गगन में दैदीप्यमान उज्ज्वल नक्षत्र के समान है इनकी आभा देश और काल की संकुचित सीमा पार करके सर्वदा एक समान क्षेत्रों में सहस्रों वर्षों की अनुभूतियों ने इनको अमरता प्रदान की है और करोड़ों कण्ठों से निकलने के कारण इनमें माधुर्य और कोमलता का यथेष्ट परिपाक हुआ है। ये सूक्तियाँ। यदि न हों तो साहित्य में रस की कोई स्थिति ही न रहे
और कविता, कहानी, उपन्यास निबन्ध और वक्तृता की कला विकल हो जाए। दस बीस वाक्यों को ही नही पूरे पृष्ठ एवं सन्दर्भ को सजीव बनाने की इनमें अद्भुत क्षमता होती है। और वक्तृत्व कला को चमकाने में तो ये अपनी अद्वितीय स्थिति रखती है बहुधा लेखकों कवियों एवं साहित्यकारों के समान ही इनकी आवश्यकता सामजिक कार्य करने वालों को एवं राजनीतिज्ञों को