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अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014 क्षत्रचूडामणि पर अन्य कवियों का प्रभाव :
गद्यचिंतामणि तथा क्षत्रचूडामणि को देखने से लगता है कि काव्य के विषय में इन पर पूर्ववर्ती कालीदास बाण सुबुन्धु दण्डी आदि का प्रभाव है तो धर्म और दर्शन में समन्तभद्र पूज्यपाद, शिवार्य और अकलंक का प्रभाव परिलक्षित है। प्रजानां विनयाधानाद्रक्षणाद्भरणादपि। स पितपितरस्तासां केवलं जन्म हेतवः सुख दुःखे प्रजाधीने तदाभूता प्रजापतेः। प्रजानां जन्म वर्ग हि सर्वत्र पितरो नृपाः।
क्षत्र. लम्ब ११ श्लोक ४ रात्रिंदिवभागेषु यदादिष्टं महीक्षिताम। तत्सिषेषे नियोगेन स विकल्पपराड्. गमुखः।
रघुवंश सर्ग १७ श्लोक ४९ रात्रिंदिवभागेषु नियतो नियति व्याधात्।कालातिपातमात्रेण कर्त्तव्यं हि विनश्यति।
क्षत्र. लम्ब ११ श्लोक ७ स वेलावप्रवलयां परिखीकृतसागरम अनन्यशासनामुर्वी शशासैकमहीमिव
रघुवंश सर्ग: श्लोक ३० प्रबुद्धेषस्मिन् भुवं कृत्सनांरक्षत्यकेपुरीमिवराजवंती च भूरासीदन्वर्थ रत्नसूरपि।
क्षत्र.लम्ब ११ श्लोक ९ इन्द्रियाणामसन्तोषं यः कश्चित् सेवते स्त्रियम्
सः करोति पशः कर्म नर रूपस्य मोहनम् ।।१६।।
जो पुरुष इन्द्रियों को सन्तुष्ट न कर काम सेवन करता है वह उसकी पाशविक क्रीडा समझनी चाहिए। स्व स्त्रीभोग भी समयानुकूल होना चाहिए।
नीतिवाक्यामृतम्- (२) विषयासक्त चित्तानां गुणाः को वा न नश्यति
न वैदुश्यं न मानुष्यं नाभिजात्यं न सत्यवाक पंचेन्द्रियों के विषयों में आसक्त मनुष्य का कौन सा सदगुण नष्ट नहीं होता अर्थात् उनके सभी सद्गुण नष्ट हो जाते हैं विषयों की आसक्ति
और सद्गुणों में परस्पर सदा से ही बैर रहा है। अतः विषयासक्त मनुष्य में विद्वता, मानवता, कुलीनता, सत्यनिष्ठा विवेक आदि कोई भी गुण नहीं रहता
क्षत्र. लम्ब१ श्लोक १० कामासक्त चित्तानां गुणाः को वा न नश्यति न वैदुश्यं न पाण्डित्यं नाभिजातित्व शुद्धि भाक।।
है।