________________
अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014
वर्ष की पूर्णता पर अकादमिक जगत् को मेरा विनम्र उपहार है। यह स्वामी समन्तभद्र के अध्ययन- अनुसन्धान की एक वृहत् योजना का अनुभाग है। इस योजना में सम्पादन, अध्ययन-अनुसन्धान से सम्बद्ध तथा अपनी प्राचीन धरोहर के संरक्षण दत्तावधान कम से कम तीन पीढ़ियों का सहभाग है, जिसका उल्लेख मैंने कृतज्ञता शीर्षक के अन्तर्गत स्वतंत्र रूप से किया है। सम्पादन में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत मानक तथा प्रस्तुति में नवीनतम वैज्ञानिक तकनीक का उपयोग किया गया है। इक्कीसवीं शती में अब इससे आगे का कार्य होना चाहिए। समन्तभद्र के सभी उपलब्ध ग्रन्थ उनकी संस्कृत टीकाओं के साथ इसी क्रम में प्रकाशित होने की प्रक्रिया में है । आशा है इस उपक्रम का स्वागत होगा।
*****
15
- ई-१, शालीमार पाम्स, पिपल्याहाना, इन्दौर-४५२०१६ (म०प्र०)
पूर्व विभागाध्यक्ष एवं जैनागम विभाग, संकायाध्यक्ष श्रमण विद्यासंकाय,
संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी