________________
अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014
भित्तिचित्र :
शिलाखण्डों को काटकर चैत्य, विहार तथा मन्दिर आदि बनाने की परम्परा अति प्राचीन है और उन गुहा मन्दिरों पर पलस्तर लगाकर तथा चूने आदि से चिकनाकर उन पर चित्र बनाये जाते थे। इसी परम्परा के अनुरूप जोगीमारा गुहा में भी चित्रांकन हुआ है जो भारतीय भित्ति चित्रों के सबसे प्राचीन नमूने हैं। भित्ति चित्रों के अधिकांश भाग मिट गये हैं और सदियों की नमी एवं गर्मी ने उन्हें प्रभावित किया है । विद्वानों ने यहाँ की चित्रकारी को ईसापूर्व तीसरी-चौथी शती का माना है।
17
अजन्ता गुहा मन्दिर समूह के चार चैत्यों में से दो हीनयान और दो महायान सम्प्रदाय के हैं । इन दोनों के निर्माण काल में काफी अन्तर है। गुहा नं. ९ और १० का निर्माण काल प्रायः ईसापूर्व दूसरी और पहली सदी का सम्मिलन काल है, जबकि गुहा नं. १९ और २६ का निर्माणकाल ईस्वी सन् की पांचवी छठवीं सदी का सम्मिलन काल है। इन चारों गुहाओं को छोड़कर शेष गुहायें विहारगृह हैं। विहार भिक्षुओं का आवासगृह था। इन विहारों का निर्माण चैत्यों के अगल बगल ही विशेष रूप से हुआ है, यद्यपि शिल्प में समयानुसार बहुत अन्तर है। हीनयान काल में स्थापत्य एवं कला सादगी पूर्ण थी, जबकि महायान काल में आकर इसमें अलंकरणात्मक प्रवृत्ति बढ़ जाती है। विशाल और आकर्षक मुख भागों की रचना, नक्काशीदार खम्भे, मूर्तियों से सुशोभित दीवार की खुदाई और सुन्दर चित्रकारी महायान काल के गुहा मन्दिरों की विशेषता है। गुहा मंदिरों की दीवारों को सीधा और समतल करने के बाद उनमें छेनी से छोटे-छोटे छेद कर दिये जाते थे और सतह को खुरदुरा किया जाता था बाद में इसमें विशेष प्रकार का पलस्तर लगाकर चूने का लेप चढ़ाया जाता था । आधार तैयार होने के बाद हल्के गेरू रंग से तूलिका द्वारा रेखांकन किया जाता था। तत्पश्चात खनिज रंगों (प्रमुखतया पीला, लाल, नीला, सफेद, काला और हरा) का प्रयोग किया जाता था । अजन्ता के भित्ति चित्रों की प्रमुख विषयवस्तु गौतम बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित घटनाओं तथा जातक कथाओं पर आधारित है।
बाघ के चित्र अजन्ता शैली की प्रधान परम्परा से सम्बद्ध हैं। चित्रों की