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अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014 एवं विशेष्य विशेषण से रहित जो होता है वह अवस्तु ही तो होता है। तथा जो वस्तु विशेष्य विशेषण से रहित होती है उसका प्रतिषेध करना भी नहीं बनता है। अतः अवस्तु का प्रतिषेध भी सम्भव नहीं है। यह पुष्ट करते हुय कहा गया है कि सत्तात्मक संज्ञी पदार्थ का प्रतिषेध द्रव्य क्षेत्र काल और भाव की मर्यादा में द्रव्यान्तर क्षेत्रान्तर कालान्तर और भावान्तर की अपेक्षा ही किया जा सकता है। जो सर्वथा असत् है वह विधि निषेध का स्थान नहीं हो सकता
इस प्रकार बौद्धाभिमत क्षणिक तत्त्व सभी धर्मों से परिवर्जित होने से अवस्तु हैं। अवस्तु होने से अनभिलाप्य है। अनेकान्त वादियों के यहाँ वस्तु ही द्रव्य क्षेत्र काल भाव रूप प्रक्रिया के विपर्यय से अवस्तु कहलाती है। अपने धर्मों से परिवर्जित कोई वस्तु कभी होती ही नहीं है।३ क्षणिकैकान्त पक्ष में परमाणुओं की सिद्धि संभव नहीं है। बौद्ध लोग पाँच प्रकार के स्कन्ध मानते हैं। यथा (१) रूपस्कन्ध (२) वेदना स्कन्ध (३) विज्ञान स्कन्ध (४) संज्ञा स्कन्ध और (५) संस्कार स्कन्ध। इन स्कन्धों की सन्तति चलती रहती है। इनकी सन्तान संवृत्तिरूप होने से अपरमार्थभूत है। परमार्थभूत तो स्वलक्षण होता है। पदार्थ का स्वलक्षण तो स्थिति उत्पत्ति और व्यय है, जो अपरमार्थभूत स्कन्धों में सम्भव नहीं है।
सर्वथा नित्यत्वैकान्त और क्षणिकैकान्त में दोष देखकर निरपेक्ष नित्यत्व और क्षणिकत्व का वस्तु में विरोध है। इस दोष से बचने के लिये यदि वस्तु को अवाच्य मानेंगे तो यह उक्ति भी ठीक नहीं है क्योंकि 'न वाच्यम्' इस कथन से उसके वाच्य होने का प्रसंग आ जाता है।
सर्वथा नित्यत्व, क्षणिकत्व, तदुभयत्व और अवाच्यत्व आदि एकान्तों में वस्तु की सिद्धि नहीं होती है किन्तु कथञ्चित् नित्यत्व और कथञ्चित् क्षणिकत्व की प्रसिद्धि वस्तु में होती है यह बताने के लिये निम्न कारिका प्रस्तुत हुई है -
"नित्यं तत्प्रत्यभिज्ञानान्नाकस्मात्तदविच्छिदा।
क्षणिकं कालभेदात्ते बुद्धयसंचरदोषत्ः।।४६ वस्तु प्रत्यभिज्ञान का विषय बनती है यह आकस्मिक अर्थात् अकारण