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अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014 के विपरीत विसंगतियों को जन्म देकर अपवाद पैदा कर रहे हैं। नवग्रह शान्ति के लिये ग्रहों की पूजा करना, उनके लिये अष्टद्रव्य की जगह अन्य सामग्री समर्पित करना, वीतराग की पूजा की उपेक्षा और रागी की पूजा की प्रधानता होती जा रही है। भजनों व संगीत के माध्यम से होने वाले विधानों में विसंगतियाँ :
संगीत और गीतों की बहुलता से विधान के छंद स्पष्ट सुनाई नहीं देते। विधान गौण और संगीत मुख्य हो जाता है। गीत, संगीत जैनधर्म सिद्धान्त के पोषक होने चाहिये तभी वे धर्म के प्रचारक होते हैं। किन्तु वर्तमान में जैन सिद्धान्त, दर्शन के विपरीत शब्दावली वाले गीत गाये जाने लगे हैं। जो जैन सिद्धान्तों का मजाक उड़ाते नजर आते हैं। यथा - वीर बनके महावीर बन के चले आना, ओ पालन हारे निर्गुण और न्यारे आदि कर्तृत्ववाद, अवतारवाद आदि अन्य दर्शनों के सिद्धान्तों को पुष्ट करने वाले गीतों की प्रचुरता देखी जाती है। फिल्मी धुनों पर कुछ शब्दों के परिवर्तन मात्र कर देने से जैन गीत बना दिये जाते हैं और उसी फिल्मी तर्ज पर गाये जाने पर संगीत के शोर में मात्र धुन सुनाई देती है। जिससे उसी फिल्मी गीत के शब्द याद आते हैं। फिल्म का वही दृश्य आँखों के सामने होता है। अभिषेक पूजन, आराधना में आयी विसंगतियाँ : १. अभिषेक की थाली में वेदी की सभी चल प्रतिमाएं स्थापित करना। २. तीर्थकर प्रतिमा के साथ यक्ष-यक्षणी की मूर्ति भी स्थापित करना। ३. अभिषेक व प्रक्षाल के लिए पाषाण की प्रतिमा रखना। ४. अभिषेक के समय सभी प्रतिमाओं का स्पर्श कर मस्तक पर लगाना। ५. अभिषेक में अप्रासुक जल का प्रयोग करना। ६. पंचामृत अभिषेक में बाजार से दूध की थैली अमर्यादित दही, घी आदि के द्वारा अभिषेक करना। ७. अष्टगंध का पिसा हुआ पाउडर बाजार से लाकर पानी में घोलकर अभिषेक करना। ८. पाण्डुक शिला का अभिषेक करना।