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अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014 वस्तुत्व त्रयात्मक है।
एक द्रव्य में एक समय में अनेक उत्पाद होते हैं और जितने उत्पाद होते हैं, उतने ही पूर्व पर्यायों का विनाश होता है। पूर्वोत्तर अवस्थाओं में स्थायी रूप से रहने वाले ध्रुव धर्मरूप गुण या स्थायी व्यञ्जन पर्याय भी उतने ही होते हैं। अर्थ पर्याय अर्थ क्रिया की अपेक्षा से प्रति समय नष्ट होने वाले भी उतने होते हैं। यह उत्सर्ग सामान्य नियम है। विशेष की अपेक्षा एक स्कन्ध रूप घट के नाश से अनेक कपाल एक साथ उत्पन्न हो जाते हैं। जीव मन, वचन और काय से जैसी क्रिया देखता है, वैसा ज्ञान में जानन रूप से परिवर्तन होता है। जैसे-जैसे रूपादि को जानता है, वैसे वैसे ज्ञान में भी परिवर्तन पाया जाता है। संयोग वियोग से भी जीवादिक में भिन्न-भिन्न प्रकार के उत्पाद दिखाई देते हैं। उत्पाद-व्यय-धौव्य ये तीनों एक समय में भी होने वाले पाये जाते हैं और भिन्नकाल में होने वाले भी पाये जाते हैं। प्रतिसमय पूर्व पर्याय का नाश और वर्तमान पर्याय का उत्पाद तथा पूर्वपर्याय सामान्य रूप गुण सदा प्रदेशों की अपेक्षा ध्रुवरूप है। स्कन्ध में भी ये तीनों प्रतिसमय होते रहते हैं किन्तु स्कन्धों में होने वाले उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य भिन्न कालवर्ती भी होते हैं। जैसे मिट्टी के पिण्ड से घड़े का उत्पाद किसी अन्य काल में होना है तथा उस घट के फूटने का काल भिन्न है तथा घट की ध्रौव्यता का काल सामान्य अपेक्षा से उत्पाद और नाश के मध्य का है। ये उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य नित्यानित्य स्वरूप परमार्थ सत् को कहते हैं और गुण पर्याय को भी कहते हैं क्योंकि गुण-पर्याय के बिना उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य संभव नहीं है। गुण अन्वयी होते हैं प्रत्येक अवस्था में द्रव्य के साथ अनुस्यूत रहते हैं और पर्याय व्यतिरेकी होती है प्रति समय परिवर्तनशील होती है। अतः गुण और पर्याय उत्पाद विनाश और ध्रौव्य का सूचन कहते हैं ओर नित्यानित्य परमार्थ सत् का अववोध कराते हैं।
एक द्रव्य से दूसरा द्रव्य नहीं बनता। सभी द्रव्य स्वभवसिद्ध हैं और अनादि अनन्त हैं और जो अनादि अनन्त होता है, उसकी उत्पत्ति के लिए अन्य साधनों की आवश्यकता नहीं होती, उसका मूल साधन तो उसका गुण पर्यायात्मक स्वभाव ही है, इसलिए वह स्वयं सिद्ध है। जो द्रव्यों से उत्पन्न होता है, वह द्रव्यान्तर नहीं या अन्य द्रव्य नही है किन्तु पर्याय है, क्योंकि वह अनित्य होता है। जैसे दो परमाणुओं के मेल से द्वयणुक बनता है या जैसे