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अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014
प्रतिक्षण पर्याय भेद से पदार्थों में अनन्त रूपता होती है। अतः भावात्मक पदार्थ अनन्त धर्मात्मक है अथवा सत्त्व, ज्ञेयत्व, अतिसूक्ष्मत्व, अवगाहनत्व, असंख्येय प्रदेशत्व, अनादिनिधनत्व और चेतनत्व की दृष्टि से भी जीव अनेक धर्मात्मक है अर्थात् आत्मा नामक पदार्थ सत्स्वरूप है। ज्ञान का विषय होने से ज्ञेय, गुण व पर्याय रहित होने से द्रव्य है, रूपादिरहित होने के कारण अमूर्तिक है, इन्द्रियों का विषय न होने से अतिसूक्ष्म है। एक में अनेक रहने के कारण अवगाहनात्मक है। किसी न किसी आकार से युक्त होने के कारण प्रदेशात्मक है। आत्मा उत्पत्ति और विनाश रहित होने से चेतनात्मक है। इस प्रकार एक ही पदार्थ पर्यायों के भेद से अनेक धर्म स्वरूप
अनेकान्त के भेद:
जो वस्तु अनेकान्त रूप है, वही सापेक्ष दृष्टि से एकान्त रूप भी हैं। श्रुतज्ञान की अपेक्षा अनेकान्त रूप है और नयों की अपेक्षा एकान्त रूप है। बिना अपेक्षा के वस्तु का रूप नहीं देखा जा सकता है। आचार्य कुन्दकुन्द ने अनेकान्त दो प्रकार का बताया है-क्रम अनेकान्त और अक्रम अनेकान्त।१४ आचार्य अकलंक देव ने भी अनेकान्त के दो भेद किये हैं-मिथ्या अनेकान्त और सम्यक अनेकान्ता अनेकान्त भी अनेकान्तात्मक है: __ जिस प्रकार जीवादि प्रत्येक वस्तु अनेकान्तात्मक है, उसी प्रकार अनेकान्त में भी अनेकान्त पाया जाता है अर्थात् अनेकान्त सर्वथा अनेकान्त नहीं है, किन्तु कथंचित् एकान्त और कथंचित् अनेकान्त है। जब प्रमाण दृष्टि से समग्र वस्तु का विचार किया जाता है, तब वह अनेकान्त कहलाता है। किसी एक धर्म का विचार किया जाता है, तब वही एकान्त हो जाता है। तात्पर्य यह है कि अनेकान्त प्रमाण की अपेक्षा अनेकान्त और नय की अपेक्षा एकान्त है, इस प्रकार अनेकान्त में भी अनेकान्तात्मकता सिद्ध होती है। मिथ्याज्ञान:
जो ज्ञान संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय से युक्त हो, उसे मिथ्याज्ञान कहते हैं। परस्पर विरुद्ध कोटि के स्पर्श करने वाले ज्ञान को संशय कहते हैं।