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अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014
पूजा -
१- दिन के आधार से पूजा करना जैसे रविवार को पार्श्वनाथ, सोमवार को चन्द्रप्रभ, मंगलवार को वासुपूज्य, शनिवार को मुनिसुव्रतनाथ भगवान आदि की पूजा करना ।
२- सांसारिक सुखों के लिए वीतराग की पूजा करना ।
३- बाजार की अमर्यादित धूप का प्रयोग करना ।
४- बड़े विधानों के केशर या हरसिंगार की जगह हल्दी या पीले रंग से पुष्प और दीप बनाना।
५- पूजा में थैली या प्लास्टिक की छन्नी से छने जल का प्रयोग करना ।
६ - धूप अग्नि में जलाकर पूजा की परम्परा का समाप्त होना ।
७- धूप की जगह लौंग चढ़ाना।
८ - रात्रि में ही सामग्री धोकर टेबिल पर लगा दी जाती है। चौबीस समवशरण, चौबीस इन्द्र, चक्रवर्ति बनाने की विसंगति :
चौबीस तीर्थकर के समवशरण एक साथ लगाना। चौबीस इन्द्र, चौबीस चक्रवर्ति आदि बनाकर आगम का उपहास करना। एक काल में एक से ज्यादा तीर्थंकर संभव ही नहीं, चक्रवर्ति बारह ही होते हैं। उनके काल भी अलग अलग होते हैं। धन संग्रह के उद्देश्य से किये जाने वाले विधान आदि में भगवान की महिमा गरिमा गौण हो जाती है और व्यक्ति मुख्य हो जाता है। किराये की ड्रेस की अपवित्रता का ध्यान नहीं रखा जाता है।
हवन में व्याप्त विसंगतियाँ :
१ - हवन में बाजार की घुनी, गीली, छिलके वाली लकड़ी जलाना ।
२- हवन कुण्ड एक अरत्नि लम्बे, चौड़े, गहरे न होकर मनमाने आकार के होना ।
३- स्थण्डल की जगह मिट्टी के कुण्ड में हवन करना ।
४- हवन कुण्ड में नारियल, कलावा, यंत्र, अंगूठी, कड़ा, माला आदि रखकर
हवन करना ।
५- सलवार सूट, पेन्ट शर्ट पहिनकर हवन करना ।
६- अन्य धर्मों की तरह नव कुण्डीय एकादश कुण्डीय यज्ञ आदि शब्दावली