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पाठकों के पत्र
अनेकान्त 67/2, अप्रैल - जून 2014
“ अनेकान्त” जैन विद्याओं और तुलनात्मक धर्मशास्त्र तथा सांस्कृतिक इतिहास को शोध के निकष पर व्याख्यापित करने वाली आदर्श पत्रिका है। इसका सामग्री संचयन, सम्पादन, मुद्रण और साजसज्जा सभी कुछ अभिराम है। सम्पादक मण्डल और प्रकाशक बधाई के पात्र हैं।
- डॉ. भागचन्द जैन, ‘भागेन्दु', निदेशक, संस्कृत प्राकृत तथा जैन विद्या अनुसंधन केन्द्र - दमोह (म.प्र.)
'अनेकान्त' शोध त्रैमासिकी, जो वीर सेवा मंदिर से प्रकाशित हो रही है, नियमित मिल रही है। जैन समाज में कुछ ही इस स्तर की पत्रिकाऐं हैं जिन्हें पढ़कर जैनदर्शन के नये शोध आयामों से परिचय प्राप्त होता है। पं. विमलकुमार जैन प्रतिष्ठाचार्य संपादक- वीतराग वाणी, टीकमगढ़ (म.प्र.)
दिगम्बर जैन समाज में वर्तमान में जितना क्रेज पंचकल्याणक महोत्सवों और खर्चीले समारोहों का है, उतना ध्यान, स्वाध्याय और ग्रन्थों के रख-रखाव व पठन-पाठन पर नहीं है। 'अनेकान्त' जैसी शोध- पत्रिकाएं, जैन-जगत में कितनी प्रकाशित हो रही हैं औरउनके कितने पाठक हैं जो रुचि से उन्हें पढ़ते हैं ? वीर सेवा मंदिर बहुत बड़ा काम रही है, जो ऐसी उच्च स्तरीय शोधपूर्ण पत्रिका प्रकाशित करके जैनदर्शन/धर्म की मूल आस्था के चिरजीवी बनाये हुए हैं। इसमें प्रकाशित लेखों की गुणवत्ता प्रशंसनीय है। सम्पादक एवं सम्पाक मण्डल को मेरी हार्दिक बधाई ।
महेन्द्रकुमार मोतीलाल गांधी (से.नि. इंजीनियर) मुम्बई
नोट : इस अंक से पाठकों की प्रतिक्रिया नामक नया स्तंभ प्रारंभ किया जा रहा है। कृपया सुधी पाठक अपने विचार एवं सुझाव भेज सकते हैं।