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अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014 दिगम्बर जैन शास्त्रि परिषद् ने ०१ जून २०१४ को खतौली में आयोजित
अधिवेशन के अवसर पर जो पुरातत्त्व संदर्भित कहा था उसे मैं यहाँ यथावत् उद्धृत कर रहा हूँ – “कहीं मंदिर निर्माण को लेकर या पुराने मन्दिरों के जीर्णोद्धार को लेकर पुरातत्त्व के नाम से कुछ लोग विसंवाद करने से नहीं चूक रहे हैं। यहाँ तक की असामायिक लोग जो मन में आ रहा है वह बोल रहे हैं, लिख रहे हैं। पढ़ने/देखने/सुनने में आ रहा है कि चारित्राधारक परमपूज्य आचार्य/ मुनियों को लक्ष्य कर यद्वा-तद्वा लिखा/ बोला जा रहा है। जो धर्म और समाज दोनों को ही अत्यधिक नुकसान पहुंचाने वाला है।
__पुरातत्त्व को लेकर जो विवाद उत्पन्न हो रहे हैं या किये जा रहे हैं, उन पुरातत्त्ववेत्ताओं को पुरातत्त्व की परिभाषा करनी होगी। पुरातत्त्व की क्या सीमा है? क्या १००-२०० वर्ष पुरानी संपदा/ मंदिर धर्मशालायें सभी पुरातत्त्व की सीमा में आयेंगे। पुरातत्त्व के अंतर्गत सभी मंदिरों को घोषित करके क्या मंदिरों को सरकार के अधीन पहुंचाने का दुश्चक्र तो नहीं किया जा रहा है?"
जैन गजट साप्ताहिक का २६ मई २०१४ का अंक मेरे सामने है। 'महासभाध्यक्ष का विशेष अनुरोध नाम से छपा है- “श्री नरेन्द्र मोदी की दृढ़ इच्छाशक्ति से प्रेरणा लेवे जैन समाज।" इसमें श्रीमान अध्यक्ष जी का कहना है कि मेरा सभी प्रांतीय एवं केन्द्रीय पदाधिकारियों से अनुरोध है कि न सिर्फ नरेन्द्र मोदी जी की इच्छा शक्ति और कर्मठता से प्रेरणा लेवें बल्कि जैन समाज को और मजबूत करने तथा अपने पुरातत्त्व संरक्षण के कार्य को प्रेरणास्पद मान रहे हैं, उन्हें स्वयं यह पता नहीं है कि वे क्या कह रहे हैं? उनके कथन का क्या अर्थ है? हाँ उन्हें इतना जरूर पता है कि उनके कुछ धनक्रीत लोग हैं, चेले हैं या नाते-रिश्ते के लोग हैं जो उनकी हाँ में हाँ मिलाने को तैयार हैं। उनसे भी निवेदन है कि वे “मैं” और “मेरा' का त्यागकर समाज और समाज का भाव जागृत करें। उनमें अच्छी नेतृत्व क्षमता है। वे संकीर्णता, संकीर्ण विचारधारा एवं संकीर्ण पंथिक मनोवृत्ति को छोड़कर समाजहितकारी नेतृत्व
की ओर बढ़ें। मेरी प्रार्थना है कि समाज का पुण्योदय आये और व्यर्थ के विसंवाद दूर हों। परोपकार का धंधा :
आजकल देश में परोपकार का धन्धा खूब फल-फूल रहा है और जैन