________________
अनेकान्त 67/3, जुलाई-सितम्बर 2014 अर्थात् अनन्यतैकान्तवाद में अणुओं क संघात होने पर अणु विभाग अवस्था के समान ही पृथक् पृथकहते हैं यदि ऐसा है तो अणुओं में परस्पर असंहतता ही रही। इस प्रकार परमाणुओं में कोई विशेष संहति का अभाव होने से पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु इन चारभूतों में परमाणुओं की विशेष संहति मौदूत दिखाई देती हुई भी भ्रान्ति कहलायेगी जिससे चारों भूत मिथ्या होने से भ्रान्त कहलायेंगे।
रूप परमाणुओं का चार भूत स्वरूप स्कन्ध कार्य प्रान्त सिद्ध होने पर कार्यलिङ्ग से ज्ञापित परमाणु भी भ्रान्त ही सिद्ध होंगे क्योंकि कार्य जैसा होता है कारण भी वैसा ही होता है। कार्य (स्कन्ध) को भ्रान्त मानने पर कारण (परमाणु) को भी भ्रान्त मानना पड़ेगा। भ्रान्ति होने पर किसी एक का अभाव होने की स्थिति में दोनों का ही अभाव स्वतः प्राप्त है। दोनों का अभाव होने जाने से उनमें पाये जाने वाले गुण जाति आदि का अभाव भी हो जायेगा। यदि गुण जाति का होना हमें इष्ट है तो स्कन्ध रूप कार्य द्रव्य को भ्रांति रहित मानना होगा और स्कन्ध स्वरूप कार्यद्रव्य अभ्रान्त तब होगा। जब परमाणु अपने पूर्वरूप को छोड़कर स्कन्ध रूप पर्याय से परिणमित होकर बदलें।
यहाँ कार्यकरण को सर्वथा एक मानने पर उनमें से किसी एक का अभाव अपरिहार्य हो जायेगा।दो को बनाने के चक्कर में एक को छोड़ने पर अविनाभावि होने से दूसरा भी चला जायेगा। इस प्रकार द्वित्त्व संख्या का विरोध होगा और संवृत्ति के मिथ्या या काल्पनिक होने से द्वित्व संख्या को काल्पनिक मानना मिथ्या है।
उभयैकान्त अर्थात् गुण गुणी आदि में भिन्नता और अभिन्नता को निरपेक्ष रूप से मानने पर दोनों में एकात्मता नहीं बनती है क्योंकि निरपेक्षता में उनकी एकात्मता संभव नहीं है, विरोध होने से। अंत में अनेकान्त तत्त्व की सिद्धि करने के लिये निम्न दो कारिकायें समन्तभद्र ने लिखी हैं -
'द्रव्यपर्याययोरेक्यं तयोरव्यतिरेकतः। परिणामविशेषाच्च शक्तिमच्छक्तिभावतः।। संज्ञा संख्या विशेषाच्च स्वलक्षणविशेषतः। प्रयोजनादिभेदाच्च तन्नानात्वं न सर्वथा।।१६