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अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014
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अक्षर - 2014
प्रा. नरेन्द्रप्रकाश जैन द्वारा संस्थापित श्रुतसेवा निधि न्यास, फिरोजाबाद की वार्षिक परिचायिका “अक्षर-२०१४", अक्षर २०१३ की भाँति, कवि द्यानतराय के इस आदर्श दोहे को प्रतिबिम्बित करती हुई वीर सेवा मंदिर शोध संस्थान को प्राप्त हुई।
“सबद अनादि अनन्त, ग्यान कारन बिन मत्सर।
हम सब सेती भिन्न, ग्यानमय चेतन अक्षर।। न्यास ने अबतक लगभग पन्द्रह कृतियों का प्रकाशन कराया और इनके लेखकों को सम्मानित भी किया।
संपादक- अनूपचंद जैन एडवोकेट, प्रा. नरेन्द्रप्रकाश का “अक्षर विमर्श' पठनीय है। एक छोटा मंत्र है - अर्ह जो वर्णमाला के प्रथम अक्षर 'अ'
और अन्तिम 'ह' के योग से बना है। शब्द-विमर्श आचार्य श्री विद्यानंद जी महाराज, पुष्पेश पंत, डॉ. जयकुमार जलज, कैलाश मड़वैया, प्रा. निहालचंद जैन एवं अर्हद्वचन की समीक्षा भी पठनीय है। श्री भानुप्रताप सिंह, श्री चक्रेश जैन और डॉ. कैलाश वाजपेयी साहित्य-मनीषियों का न्यास द्वारा सम्मान किया जाना, उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिए अर्घ्य है।
समीक्षाकार-निहालचंद जैन
वीर सेवा मंदिर, दरियागंज, नई दिल्ली (४) लोकोत्तर साधक (आचार्य श्री शान्तिसागर जी के जीवन-प्रसंग) लेखक - प्राचार्य पं. निहालचंद जैन, निदेशक, वीर सेवा मंदिर, प्रकाशक- गजेन्द्र ग्रन्थमाला अन्तर्गत, एन. एस. इन्टरप्राइजिस, 2578, गली पीपल वाली, धर्मपरा, दरीबाकलां, दिल्ली-०६, फोन 09810035356
चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री के ४८ जीवन प्रसंगों से युक्त कृति की आमुख कथा डॉ. प्रो. रतनचन्द्र जैन, भोपाल ने लिखकर जीवन-प्रसंगों के रहस्यों को उद्घाटित किया है। मूल्य : ८० रु., पृष्ठ सं. १५० ।