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अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014
प्रयास किया। वे मात्र स्तुतिकार नहीं हैं, बल्कि जैनदर्शन के मूलबिन्दुओं की उन्होंने प्रतिष्ठापना की।
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समारोह अध्यक्ष प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाश जी ने अध्यक्षीय भाषण में आचार्य समन्तभद्र के कृतित्व पर प्रकाश डाला। प्राचार्य जी ने जहाँ आचार्य कुन्दकुन्द देव को मुनियों के प्रति संबोधन - केन्द्रित रचे गये ग्रन्थों को याद किया, वहीं आचार्य समन्तभद्र को श्रावक मैत्री के रूप में उल्लिखित किया। जैनधर्म की प्रभावना में, प्रतिकूलताओं में रचे गये ग्रन्थों की सार्वभौमिकता आज भी उतनी ही है । अध्यक्ष जी का प्रभावी व्याख्यान श्रोताओं द्वारा मंत्रमुग्ध होकर सुना गया।
कार्यक्रम का प्रारम्भ भगवान् महावीर के चित्र अनावरण, दीप प्रज्वलन एवं ध्वजारोहण और जिनवाणी पूजन तथा मंगलाचरण से हुआ । संस्था के अध्यक्ष श्री सुभाष जैन ने संस्था का परिचय और महामंत्री श्री विनोदकुमार जी ने स्वागत भाषण दिया। तत्पश्चात् 'अनेकान्त' शोध त्रैमासिकी (अंक ६७/१ जन.-मार्च २०१४) का लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाश जी को एक गरिमामय 'अभिनन्दन पत्र ' उनकी अनन्य धार्मिक एवं सामाजिक सेवाओं के लिए भेंट करते हुए “जैनविद्या प्रज्ञ” की उपाधि से अलंकृत किया गया। अभिनन्दन-पत्र का वाचन वीर सेवा मंदिर के निदेशक प्राचार्य निहालचंद जैन ने किया।
कार्यक्रम का संचालन प्रो. डॉ. जयकुमार जैन, मुजफ्फरनगर (सम्पादक - अनेकान्त) ने किया। कोषाध्यक्ष श्री वीरेन्द्र कुमार जैन ने उपस्थित सभी विद्वानों एवं गणमान्य प्रबुद्ध श्रोताओं का आभार व्यक्त किया। समारोह में देश के लगभग २० विद्वानों की सहभागिता रही, जो संस्था से जुड़ाव का परिचायक है।
समाज के प्रमुख श्रेष्ठि वर्ग व विद्वान् जिनकी सन्निधि प्राप्त हुई, उनमें प्रमुख हैं- सर्व श्री भारतभूषण जैन एडवोकेट, चक्रेश जैन, रूपचन्द कटारिया, विमल प्रसाद जैन, प्रो. एम. एल. जैन, प्रो. कमलेश कुमार जैन, वाराणसी, डॉ. जयकुमार जैन, डॉ. जयकुमार उपाध्ये, डॉ. नरेन्द्रकुमार गाजियाबाद, डॉ. रमेशचन्द्र जैन बिजनौर, डॉ. फूलचन्द प्रेमी, प्रो. अशोक कुमार जैन, डॉ. सुरेशचन्द्र जैन, डॉ. सत्यप्रकाश जैन, प्रो. वीरसागर जैन,