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अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014 सर्वोदय तीर्थ कहा है।
सर्वोदय शब्द सर्व एवं उदय दो शब्दों से मिलकर बना है। अर्थात् सभी उदय अर्थात् उन्नति कल्याण। जिस स्थान से या जिनके द्वारा या जिनके माध्यम से, जिनके अवलम्बन से जीव का कल्याण हो, उसे सर्वोदय तीर्थ कहते हैं।
जे त्रिभुवन में जीव अनन्त सुख चाहें दुख तें भयवन्त। ___ संसार के सभी चराचर प्राणी दुखी हैं तथा शाश्वत सुख चाहते हैं। इस हेतु जो मार्गदर्शन देता है, वह हमारे लिये कल्पवृक्ष और चिन्तामणि रत्न के समान प्रतीत होता है और इस शाश्वत् निराकुल सुख की प्राप्ति हमें धर्म से ही होती है।
याचे सुरतरु देय सुख चिंतत चिंता रैन
बिन याचें बिन चिंतये धर्म सकल सुख देन। जिन या जैन तीर्थकरों ने इन विपरीत परिस्थितियों से मानव को तारने हेतु या शाश्वत सुख की प्राप्ति हेतु स्वयं शाश्वत सुख एवं अभ्युदय मार्ग का अवलम्बन लेते हुये पहले तो स्वयं उसको प्राप्त किया और फिर एक कुशल वैज्ञानिक की भाँति जब उसको स्वयं प्राप्त कर लिया तो उसका उपदेश दिव्यध्वनि के द्वारा लोगों के हितार्थ दिया। प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता। यह एक ऐसा सर्वोदय तीर्थ है जिस पर कोई भी प्राणी आकर तदनुकूल प्रयास/पुरुषार्थ करता है तो वह मुक्ति को प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार यह शाश्वत सुख का मार्ग संसार के सभी प्राणियों के लिये खुला हुआ
है।
इस प्रकार यह जो सर्वोदय के उपाय दिये गये, इसमें मानव मात्र ही नहीं अपितु प्राणी मात्र को, चारों गतियों के जीवों को, चौरासी लाख योनियों के लोगों को, बस स्थावर सभी का हित निहित था। अतः यह जनोपयोगी सर्वोदय तीर्थ कहलाया जिसमें बिना किसी भेदभाव के, बिना किसी धर्म, संप्रदाय, जाति, योनि, वर्ण आदि किसी भी पक्षपात से रहित प्राणी मात्र के उद्धार का मार्ग था। यह सर्वोदयी धर्म प्राणी के मन-वचन-काय को सुखमय बनाने का श्रेष्ठ आधार है और रहेगा। यहाँ आकर यदि "श्रेणिक” तिरता है तो उसके