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अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014
47 प्रकृतियों की स्थिति का घटाना। (४) अनुभाग खण्डन :- पहले बंधी हुई उन सत्ता में रहने वाली अशुभ कर्म प्रकृतियों का अनुभाग घटाना। (स) अनिवृत्तिकरण -
अ (नहीं) + निवृत्ति (भेद) + करण (परिणाम) अर्थात् भेद रहित समान परिणाम।
यहाँ समान समयवर्ती अनेक जीवों के परिणाम समान होते हैं जितने अनिवृत्तिकरण के अंतर्मुहूर्त के समय हैं उतने ही अनिवृत्तिकरण के परिणाम
करण लब्धि तो भव्य जीवों को ही होती है। “करणलब्धिस्तु भव्य एव स्यात्'११
करण लब्धि भव्य जीव के सम्यक्त्व ग्रहण अथवा चारित्र ग्रहण के काल में ही होती है।
इस प्रकार ज्ञान आदि शक्ति विशेष लब्धि है। सम्यक्त्व प्राप्ति में उक्त पांच लब्धियों (क्षयोपशम, विशुद्धि, देशना, प्रायोग्य और करण) का होना आवश्यक है। इनमें पूर्व की चार लब्धियाँ तो भव्य और अभव्य दोनों प्रकार के जीवों के हो सकती है लेकिन पांचवी लब्धि (करण लब्धि) भव्य जीवों के होती है। संदर्भः १. रा. वा. २/५/८/१०७/२८
२. - धवला ५/१, ७, १/१९१/३ ३. धवला १, १, १/५८-६५; वसु क्षा/५२७ गो. सा. जीव/ जी.प्र./६३/१६४/६ ४. नियमसार/ता. दृ. १५६
५. - धवला ६/१-९-८/३, गाथा १/२०४ ६. - धवला ६/१.९.८३/२०४-३ ७. - धवला ६/१, ९-८, ३/२०४/५ ८. - धवला ६/१/? ९-८, ४/२१४/५; गो. क.जी.प्र./९/८९७/१०७६/४ ९. - धवला १/१, १, १६/१८०/१ १०. - ल. सा./जी. प्र. ३३/६९ ११. गो. जी./ जी.प्र. ६५१ / ११०० /९
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उदयपुर (राजस्थान)