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अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014
१७. वर्ज आदि शब्दों में ‘व्’ के स्थान पर विकल्प से 'उ' आदेश होता है, जैसे- आवर्जः > आउज्जो, आवज्जो । आवर्जनम् > आउज्जणं, आवज्जणं। १८. पुट और पुर शब्द के पकार का विकल्प से लोप होता है, जैसे- तालपुटम > तालउडं, तालपुडं । गोपुरम् > गोउरं, गोपुरं । १९. तृतीया विभक्ति के ए० व० में 'ण' के साथ 'सा', चतुर्थी ए० व० में आए या आते तथा सप्तमी ब० व० 'सिं' प्रत्यय भी प्राप्त होते हैं । जैसे- मणसा, वयसा, देवाए, सवणयाए, अहिताते, असुभाते, अखमाते, सव्वेसिं इत्यादि।
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२०. कम्म, धम्म शब्द के तृतीया के ए० व० में पालि की तरह कम्मुणा और धम्मुणा होता है- कम्मुणा बम्हणो होइ (उत्तराध्ययन सूत्र ) । २१. तत् शब्द के पंचमी के बहुवचन में 'तेब्भो' रूप भी मिलता है।
२२. युष्मत् शब्द की षष्ठी का ए० व० संस्कृत की तरह 'तव ' और अस्मत् की षष्ठी का ब० व० 'अस्माकं' भी पाया जाता है।
२३. भूतकाल के ब० व0 में इंसु प्रत्यय भी प्राप्त होता है, जैसे- पुच्छिंसु, गच्छिंसु, आभासिंसु इत्यादि।
२४. समूह, सम्बंध और अपत्यार्थ बतलाने के लिए 'इय', 'अण', और 'इज्ज' प्रत्यय, निज संबन्ध बतलाने के लिए 'इच्चिय' और 'इज्जिय' प्रत्यय, भावार्थ मं ‘इय’, ‘इल्ल’, ‘इज्ज’, ‘इय’, ‘इक' और 'क' प्रत्यय, स्वार्थ में 'अण, 'इक', 'इज्ज', 'इय', 'इयण', 'इम', 'इल्ल', 'त्ता', 'उल्लह' और 'मेत्त' प्रत्यय, अतिशय अर्थ बतलाने के लिए 'इ', 'इज्ज', प्रत्यय, भाववाचक संज्ञा बनाने के लिए ‘त्त' और 'तण' प्रत्यय, विकार अर्थ में 'अण' और 'मय' प्रत्यय एवं प्रकार अर्थ में ‘हा’ प्रत्यय प्रयुक्त होते हैं।
२५. कर्मवाच्य में 'इज्ज' प्रत्यय और प्रेरणा में 'आवि' प्रत्यय जोड़ने के अनन्तर धातु प्रत्यय जोड़ने से कर्मवाच्य और प्रेरणा के रूप बनते हैं।
२६. कृत्प्रत्ययों में सम्बन्धार्थक ' क्त्वा' प्रत्यय के स्थान पर विभिन्न रूप बनते हैं, जैसे- 'टु' जैसे - कट्टु, साहट्टु, अवहट्टु आदि । 'इत्ता', 'एत्ता', 'इत्ताणं' एत्ताणं जैसे- चइत्ता, तिउट्टित्ता, पासित्ता, करेत्ता, पासित्ताणं, करेत्ताणं इत्यादि ।
‘इत्तु’, जैसे- दुरूहित्तु, जाणित्तु, वधित्तु इत्यादि ।