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अनेकान्त 67/2, अप्रैल-जून 2014 इस शैली के तीनों रूपों में चित्र उपलब्ध है। १. ताड़पत्रों पर बने पोथीचित्र। २. कपड़े पर बने पटचित्र (चित्रित पट)। ३. कागज पर बने पोथीचित्र या फुटकर चित्र।
इस शैली के चित्र जैनेतर ग्रन्थों यथा बसन्तविलास, बालगोपाल स्तुति, गीतगोविन्द, दुर्गासप्तशती, रतिरहस्य आदि तथा जैन ग्रन्थों में कल्पसूत्र, निशीथचूर्णी, अंगसूत्र, दशवैकालिकलघुवृत्ति, त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित, उत्तराध्ययनसूत्र, संग्रहणीयसूत्र, श्रावकप्रतिक्रमणचुर्णी, नेमिनाथचरित आदि हैं। ये सभी ग्रन्थ श्वेताम्बर जैनधर्म से सम्बन्धित हैं। दिगम्बर परम्परा के अन्तर्गत मूडबिद्री में षट्खण्डागम की ताड़पत्रीय प्रतियाँ ग्रन्थ व चित्र दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। उपासकाचार, महापुराण, यशोधर चरित्र, सुगन्धदशमीकथा, भक्तामरस्तोत्र, त्रिलोकसार आदि सचित्र ग्रन्थ हैं। वस्तुतः दिगम्बर जैन शास्त्र भण्डारों की इस दृष्टि से अभी तक शोध-खोज होनी शेष
है।
जैनशैली के चित्रकारों ने भारतीय चित्रकला में कुछ नयी विधाओं का समावेश किया। अपनी इन विशेषताओं के कारण जैन चित्र अपना अलग महत्व और अलग इतिहास रखते हैं। उनकी इन विशेषताओं का परिचय इस प्रकार है :१. पहली विशेषता चक्षु चित्रण में है। इनमें नेत्र उठे हुये और बाहर की ओर उभरे हुये हैं। उनकी लम्बाई कानों को छूती है। भवों और नेत्रों का फैलाव समान है। २. इन चित्रों की पृष्ठभूमि में बहुधा लालरंग का प्रयोग किया गया है। ताड़पत्रों पर अंकित चित्रों में प्रायः पीलेरंग का प्रयोग किया गया है। स्वर्णरंग को भी उपयोग में लाया गया है। ३. रेखाओं की दृष्टि से जैनचित्र बड़े सम्पन्न हैं। ताड़पत्र के चित्रों पर जैन कलाकारों ने जो सूक्ष्म रेखायें अंकित की हैं वे अत्यन्त सुन्दर और सधी हुई
४. सोने और चांदी की स्याही से बहुमूल्य चित्रों का निर्माण भी जैन शैली की विशेषता है। इन चित्रों में प्राकृतिक दृश्यों को हांसिये पर अत्यन्त सुन्दरता के