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अनेकान्त 67/1, जनवरी-मार्च 2014
पुस्तक-समीक्षा
(१) बुन्देली भक्तामर स्तोत्र रचनाकार : कवि कैलाश मड़बैया प्रकाशक : मनीष प्रकाशन, ७५, चित्रगुप्त नगर, कोटरा, भोपाल (म.प्र.) प्रथम संस्करण : २०१३, प्रतियाँ १०००, मूल्य : एक सौ एक रुपया।
बुन्देली भाषा के सिद्ध कवि मड़बैया जी ने भक्तामर स्तोत्र के प्रत्येक पद्य का जो बुन्देली रूपान्तरण किया है वह बुन्देली के सहज, सटीक शब्दों से अनुस्यूत है। वस्तुतः यह उनका भावानुवाद है अतः बुन्देली शब्द स्वतः भावानुकूल निकलते गये जिससे पद्यानुवाद स्वाभाविक व मधुर बन गया है। विशेष यह कि स्वयं रचनाकर - सपरिवार मानसरोवर झील के ऊपर कैलाश पर्वत पर स्थित अष्टापद पर पहुँचकर ०१ जून २०१३ में इसे समर्पित किया। अंग्रेजी, हिन्दी सहित ४ भाषाओं में सचित्र प्रकाशित उक्त बुन्देली भक्तामर का, २५ जून २०१३ को भारत भवन, भोपाल में भारत के गृहमंत्री श्री सुशील शिन्दे तथा मध्यप्रदेश के माननीय राज्यपाल आदि के करकमलों से भव्य लोकार्पण समारोह सम्पन्न हुआ।
(२) नैतिक बोध कथाएँ लेखक: प्राचार्य पं. निहालचन्द जैन प्रकाशक : गजेन्द्र ग्रन्थमाला, नई दिल्ली। प्रथम संस्करण : २०१३ सितम्बर, प्रतियाँ १०००, मूल्य : ८०/- रु.
“सौ बोध कथाओं" के तृतीय संस्करण के साथ ही "नैतिक बोध कथाएँ" (७२ बोध कथाओं का संग्रह) का गजेन्द्र ग्रन्थमाला से प्रकाशन हुआ जो पर्युषण पर्व (अनंत चतुर्दशी) २०१३ के पुनीत अवसर पर रामलीला मेला ग्राउन्ड, दिल्ली पर बने एक भव्य पाण्डाल में आर्यिका रत्न मुक्ति लक्ष्मी जी के करकमलों से इसका लोकार्पण संपन्न हुआ और उसी समय इसकी लगभग ४०० प्रतियाँ सुधी पाठकों द्वारा क्रय कर ली गयीं। कृति के प्रणयन का उद्देश्य वर्तमान पीढ़ी को संस्कार और नैतिक-धर्म का संदेश इसमें वर्णित मर्मबोध कथाओं के माध्यम से पहुँचाना है। ये बोधकथाएं हमारी सांस्कृतिक विरासत को अक्षुण्ण रखती हैं। कृति का भाषा प्रवाह सरल और सुबोध है। पुस्तक संग्रहणीय है।
समीक्षाकार - रमेश जैन, नवभारत टाइम्स,
नई दिल्ली