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अनेकान्त 671, जनवरी-मार्च 2014 पुस्तक एवं गीता, दो ही पुस्तकें अपने साथ रखीं) तो वीरचंद गाँधी ने फ्रांसीसी भाषा से अंग्रेजी में एक ऐसी पुस्तक का अनुवाद किया जो ईसा मसीह के जीवन के 'अज्ञात' वर्षों से सम्बन्धित है। वस्तुतः रूसी यात्री निकोलस नोतोविच को १८९० में ल्हासा (तिब्बत) के 'हेमिस' बौद्ध मठ में ताड़पत्र पर लिखा एक ग्रन्थ मिला जिसके आधार पर उसने फ्रांसीसी भाषा में Lavie inconnue de jesus Christ शीर्षक से एक पुस्तक की रचना १८९४ में की। उसी का अंग्रेजी में अनुवाद "The Unknown Life of Jesus Christ" वीरचंद गाँधी ने किया। बाइबिल में ईसा की जो जीवनी दी हुई है उसमें १४ वर्ष की आयु से लेकर २९ वर्ष तक का कोई विवरण नहीं मिलता। इस पुस्तक से यह पहली बार पता चला कि इन वर्षों में वे वैदिक धर्म और बौद्ध धर्म का अध्ययन करने भारत आए थे। बाद में, जब किसी प्रकार सूली से बच गए तब अपने जीवन के अंतिम वर्षों में वे पुनः भारत आए,यहीं रहे, यहीं उन्होंने अपने प्राण त्यागे, इसीलिए यहाँ उनकी समाधि बनी हुई है।
वीरचंद गाँधी ने अमरीका के शिकागो, बोस्टन, न्यूयार्क आदि विभिन्न नगरों में और फिर इंग्लैण्ड, फ्रांस, जर्मनी आदि यूरोपीय देशों में भी लगभग साढ़े पांच सौ व्याख्यान दिए। हर स्थान पर उनका भव्य स्वागत किया गया और अनेक स्थानों पर विभिन्न साहित्यिक और धार्मिक संगठनों ने "मैडल" देकर सम्मानित किया। उनका अध्ययन बहुत विशद था। वे केवल जैन धर्म के ही नहीं, भारत एवं विश्व के विभिन्न धर्मों के मार्मिक ज्ञाता थे। अतः उनके व्याख्यानों में सभी धर्मों की चर्चा तुलनात्मक रूप से होती थी। सभी धर्मों के मूल स्रोत के रूप में भारतीय संस्कृति ने विभिन्न धर्मों को जिस प्रकर अनुप्राणित किया है, साथ ही देश-काल की
आवश्यकताओं के अनुरूप उनमें जो अंतर आए हैं, श्री गाँधी उनकी विवेचना इस प्रकार करते थे कि भारत का सम्मान बढ़े और धार्मिक समन्वय का पथ प्रशस्त हो।
वीरचंद गाँधी केवल धर्म प्रचारक नहीं, समाज सुधारक और आर्थिक विचारक भी थे। यही कारण है कि धर्मप्रचार की दृष्टि से जहाँ उन्होंने पूर्व
के दर्शनों के अध्ययनार्थ लंदन में School of OrientalPhilosophy और Jain Literature Society की स्थापना की, वहीं समाज सुधार की दृष्टि से