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अनेकान्त 67/1, जनवरी-मार्च 2014
स्त्रियों की शिक्षा के लिए Society for the Education of Women in India की भी स्थापना की जिसके माध्यम से अनेक भारतीय महिलाओं के उच्च अध्ययन की व्यवस्था की गई। सामाजिक समस्याओं के प्रति उनकी जागरूकता - संवेदनशीलता के दो उदाहरण देखिए। पहला है वर्तमान झारखण्ड राज्य में स्थित जैन समाज के प्रसिद्ध तीर्थस्थल 'सम्मेदशिखर' से संबन्धित । ऐसी मान्यता है कि २४ में से २० तीर्थकरों ने यहीं निर्वाण प्राप्त किया। ऐसे पवित्र स्थान के निकट वर्ष १८९१ में एक अँगरेज ने कसाईखाना खोल लिया और उसके साथ सुअर का बाड़ा भी बना लिया। वीरचंद गाँधी देश की तत्कालीन राजधानी कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) गए। अंगरेज सरकार से इसके लिए संघर्ष किया और इसे वहाँ से हटवा कर ही दम लिया। दूसरा उदाहरण भारत में १८९६-१८९७ में पड़े भयंकर अकाल से सम्बन्धित है। वे उन दिनों अमरीका में थे। उन्हें जब इसकी सूचना मिली तो वे व्यथित हो गए। अमरीका में व्याख्यान देकर उन्हें जो धन मिला था, उन्होंने वह सारा धन दुर्भिक्षपीड़ितों के कष्ट निवारण में लगाने का निश्चय कर लिया। उन्होंने तुरन्त अनाज से भरकर एक जहाज और चालीस हजार रुपये भारत भेजे ।
उन्होंने प्राचीन भारतीय सभ्यता, योग दर्शन, समाधि, शाकाहार आदि पर तो प्रभावशाली व्याख्यान दिए ही, साथ ही आर्थिक विचारक के रूप में अंतर-राष्ट्रीय व्यापार, भारत की आर्थिक और औद्योगिक स्थिति जैसे विषयों पर भी व्याख्यान दिए। इसी कारण उन्हें बाद में वित्तीय विषयों पर आयोजित अनेक अंतर-राष्ट्रीय सम्मेलनों में भी भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। जार निकोलस द्वितीय के प्रयासों से जब हेग (नीदरलैण्ड) में वर्ष १८९९ में International conference of commerce आयोजित की गई, तो वे उसमें भारत के एकमात्र प्रतिनिधि थे । इस सम्मेलन में उन्होंने भारत और अमरीका के बीच व्यापार संबन्धों पर व्याख्यान दिया था।
स्वामी विवेकानंद ने १८९४ में अमरीका से जूनागढ़ के दीवान को लिखे अपने एक पत्र में इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि अमरीका की अत्यंत ठण्ड के बावजूद वीरचंद गाँधी न शराब पीते हैं न माँस खाते हैं फिर भी न जाने कैसे स्वस्थ हैं और अपने व्याख्यानों से देश एवं धर्म की सेवा कर रहे हैं।
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