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अनेकान्त 67/1, जनवरी-मार्च 2014
__ अर्थात् “विथियों के बीच में नौस्तूप थे जो कि पद्मराग मणिमय थे। एक सिद्ध भगवान की प्रतिमाओं से सुसज्जित थे, जिन्होंने अपनी कान्ति से सम्पूर्ण आकाश को व्याप्त कर रखा था। अतएव वे इन्द्र धनुषमय दृष्टव्य थी।"
फलतः उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट होता है कि जिन मूर्तियों की स्थापना का आधार साहित्यिक ग्रन्थों में जो वर्णित है उसी के अनुरूप जिन प्रतिमाओं को स्थापित करना आदर्शरूप है।
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आचार्य, इलाहाबाद