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अनेकान्त 67/1 जनवरी-मार्च 2014
भासाए भासति ।" अर्थात् वह भाषार्य कौन है? भाषार्य वे हैं जो अर्धमागधी भाषा बोलते हैं। चूँकि भाषार्यजनों का क्षेत्र मगध के अर्धाश तक सीमित होना युक्तिसंगत नहीं मालूम पड़ता अतएव इससे भी अर्धमागधी भाषा के विस्तृत क्षेत्र का अनुमान हो जाता है। इतना ही नहीं यहाँ पर बतलाया गया है कि जहाँ-जहाँ आरह प्रकार की ब्राह्मी लिपि का व्यवहार होता था वहाँ की भाषा आर्य भाषा अर्थात् अर्धमागधी थी । यथा - १६ से किं तं भासारिया ? भासारिया जे णं अद्धमागहाए भासाए भासंति । जत्थ वि य णं बंभी लिवी पवत्त, बंभीए णं लिवीए आरसविहे लेक्ख विहाणे पण्णत्ते, तं जहा - बंभी , जवणाणिया, दोसापुरिया, खर्रो, पुक्खरसारिया, भोगवइया, पहराइया, अंतक्खरिया, अक्खरपुया, वेणइया, णिण्हइया, अंकलिवी, गणियलिवी, गंधव्वलिवी, आयंसलिवी, माहेसरी, दोमिलिवी, पोलिंदी।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि मागधी भाषा के साथ-साथ जहाँ ब्राह्मी लिपि का प्रयोग होता था वहां की देशी भाषा को अर्धमागधी कहा गया है।
अर्धमागधी का तात्पर्य :
अर्धमागधी शब्द की रचना दो शब्दों के समास से हुई है- अर्ध+मागध। समास में अर्ध शब्द यदि पूर्व पद में हो तो उसका अर्थ आधा, एक चौथाई अथवा 'किंचित' होता है, जबकि यदि अर्ध शब्द उत्तर पद में हो तो उसका अर्थ केवल आधा होता है। चूंकि अर्ध-मागधी में 'अर्ध' शब्द पूर्व पद में है अतः इसका तात्पर्य हुआ कि अर्धमागधी वह भाषा है जिसमें मागधी भाषा की आधी, एक चौथाई या किंचित् विशेषताएँ मौजुद हों तथा शेभ भाग में अन्य विशेषताएँ हों। अर्धमागधी की व्युत्पत्तियों से भी इसी तात्पर्य का समर्थन प्राप्त होता है।
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इसकी व्युत्पत्ति में कहा गया है- 'अर्धमगधस्येयम्' ।" अर्थात् मगध देश के अर्धाश की जो भाषा है वह 'अर्धमागधी' है । यही बात ईसा की सातवीं शताब्दी के ग्रंथकार श्री जिन दासगणि महत्तर ने 'निशीथचूर्णि ' नामक ग्रन्थ में ‘पोराणमद्ध-मागहभासानिययं हवइ सुतं' इस उल्लेख के 'अर्धमागध' शब्द की व्याख्या के प्रसंग में इन स्पष्ट शब्दों में कही है“मगहद्धविसय-भासा-निबद्धं अद्धमागहं” अर्थात् मगध देश के अर्ध प्रदेश