________________
अनेकान्त 67/1, जनवरी-मार्च 2014
___75 अर्धमागधी का रूपगठन :
अर्धमागधी के रूपगठन के सम्बन्ध में डॉ. नेमिचन्द शास्त्री२२, हॉर्नले२, चण्ड,३४ ग्रियर्सन, मार्कण्डेय आदि विद्वान् बताते हैं कि अर्धमागधी का रूपगठन मागधी और शौरसेनी के मिश्रण से हुआ है। चूंकि पूर्व की बोली मागधी और पश्चिम की बोली शौरसेनी थी अतः इन दोनों के मिश्रण से उस मध्यवर्ती प्रदेश की भाषा का निर्माण हुआ जो अर्धमागधी कहलायी।
परन्तु अर्धमागधी के प्राप्त लक्षणों पर दृष्टिपात करें तो यह तथ्य हृदयग्राही नहीं हो पाता। क्योंकि अर्धमागधी आगम साहित्य में ऐसे रूपों की भरमार है जो मागधी और शौरसेनी सहित माहाराष्ट्री से भी भिन्न हैं, जैसे- सप्ती विभक्ति एक वचन में लगने वाला ‘अंसि' प्रत्यय-रायमग्गंसि (अंतगढ-६-१६), सयणिज्जंसि (अंतगढ १-१-६), तारिसगंसि (अंतगढ १-१-६) इत्यादि।
चतुर्थी विभक्ति ए० व० में लगने वाला ‘आए' प्रत्यय- भत्तपाणाए (अंत. ३-८-४), गमणाए (अंत. ६-३-१०) इत्यादि।
‘पदम' शब्द का ‘पम्ह' रूप। प्रसिद्ध है कि अन्य प्राकृतों में पद्म के 'पोम्म' और 'पउम’ रूप प्राप्त होते हैं, किन्तु अर्धमागधी के आगम साहित्य (उत्तराध्ययन सूत्र, आवश्यक सूत्र) में इसका ‘पम्ह' रूप भी प्राप्त होता है।
इसी मत का समर्थन करते हुए डॉ. के. आर. चंद्र, पं. हरगोविन्ददास टी. सेठ,३८ डॉ. आर. पिशल आदि विद्वान् बताते हैं कि अर्धमागधी का रूपगठन मात्र मागधी एवं शौरसेनी के मिश्रण से न होकर मागधी तथा अन्य प्राकृतों से हुआ है। चूंकि अर्धमागधी में मागधी तथा शौरसेनी की ही भाँति पालि, माहाराष्ट्री तथा देशी शब्दों की लाक्षणिकता प्राप्त हो जाती है। अतः यह तो सम्भव नहीं हो सकता कि माहाराष्ट्री आदि से अर्धमागधी अस्तित्व में आई हो। विमर्श करने पर मालूम पड़ता है कि अर्धमागधी भी पालि, मागधी के समान ही प्राचीन भाषा है। डॉ. आर. पिशल लिखते हैअर्धमागधी का सम्बन्ध प्राचीन महाराष्ट्री से न होकर प्रस्तर-लेखों की मागधी से है। प्रथमा एकवचन का प्रत्यय 'ए' इस बात का पक्का प्रमाण है कि अर्धमागधी और महाराष्ट्री दो भिन्न-भिन्न भाषाएँ हैं। यह ऐसा ६ वनिपरिवर्तन नहीं है जिसके लिए यह कहा जाए कि यह समय बदलने के