________________
अनेकान्त 67/1, जनवरी-मार्च 2014 में बालपंडितमरण कहा गया है -
देसेक्कदेसविरदो सम्मादिी मरिज्ज जो जीवो। तं होदि बालपंडितमरण जिणसासणे दिं।।
- भगवती आराधना, २०७२ वहीं आगे यह भी उल्लेख आता है कि सहसा मरण उपस्थित होने पर, जीवन की आशा रहने पर या परिजनों के द्वारा अनुमति न दिए जाने के कारण जो अंतिम सल्लेखना धारण न कर सके हैं, ऐसे उस अपने दोषों की आलोचनापूर्वक माया, मिथ्यात्व और निदान आदि तीनों शल्यों से रहित होकर अपने घर में ही संस्तर पर थिर होकर मरण करने वालो देशविरत श्रावक के मरण को बालपंडितमरण कहा जाता है -
आसुक्कारे मरणे अव्वोच्छिण्णाए जीविदासाए। णादीहि वा अमुक्को पच्छिमसल्लेहणमकासी।। आलोचिदणिस्सल्लो सघरे चेवारुहितु संथारं। जदि मरदि देसविरदो तं वुत्तं बालपंडिदयं।।
_ - भगवती आराधना, २०७७-७८ साधु परमेष्ठी को भगवती आराधना में पंडित माना गया है और पंडित के मरण को पंडितमरण कहा जाता है। विजयोदया टीका में पंडितमरण के चार भेद कहे गए हैं - व्यवहार पंडित, सम्यक्त्व पंडित, ज्ञान पंडित और चारित्र पंडित। जो लोक, वेद और समय के व्यवहार में निपुण हैं अथवा जो अनेक शास्त्रों के ज्ञाता हैं, सेवा आदि बौद्धिक गुणों से युक्त हैं, वे व्यवहार पंडित हैं। क्षायिक, क्षायोपशमिक या औपशमिक सम्यग्दृष्टि से युक्त व्यक्ति विशेष सम्यक्त्व पंडित या दर्शन पंडित हैं। जो मति, श्रुत आदि ज्ञानों से युक्त हैं, वे ज्ञान पंडित हैं। सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय
और यथाख्यातचारित्र में से किसी एक चारित्र का पालक चारित्र पंडित है। व्यवहार पंडित मिथ्यादृष्टि का मरण तो बालमरण होता है और सम्यग्दृष्टि का दर्शनपंडितमरण। दर्शनपंडितमरण नरक में, भवनवासी, वैमानिक, ज्योतिष्क व व्यंतर देवों में और द्वीपसमूहों में होता है। ज्ञानपंडितमरण भी इन्हीं में होता है, किन्तु केवलज्ञान व मनःपर्ययज्ञानपंडितमरण मनुष्यलोक में ही होता है।
पंडितमरण के चारों भेदों की उपुर्यक्त चर्चा से यह बात स्पष्टतः