Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
प्रथम अध्ययन सूत्र ७२-७६
मेहस्स जम्म बजावण-पदं
७३. तए णं सा धारिणी देवी नवहं मासागं बहुपडिपुण्णाणं अद्धद्रुमाणं पराईदियाणं वीइयन्ताणं अद्धरत्तकालसमयसि सुकुमातपाणिपायं जाव सव्वंगसुंदरं दारणं पयाया ।।
७४. तए णं ताओ अंगपडियारियाओ धारिणि देविं नवण्हं मासाणं बहुपतिपुण्गाणं जाव सव्वंगसुंदरं दारणं पयायं पासंति, पासित्ता सिग्धं तुरियं चक्तं वेइयं जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सेणियं रामं जएणं विजएणं बद्धावेंति, वढावेत्ता करयलपरिग्गाहियं सिरसावतं मत्यए अंजलिं कट्टु एवं वयासी एवं खतु देवाणुप्रिया ! धारिणी देवी नवण्डं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव सव्वंगसुंदरं दारगं पयाया । तं णं अम्हे देवाणुप्पियाणं पियं निवेएमो, पियं भे भवउ ।।
७५. तए णं से सेणिए राया तासिं अंगपडियारियाणं अंतिए एयमट्ठ सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे ताओ अंगपडियारियाओ महुरेहिं वयणेहिं विउलेण य पुष्फ-वत्य-गंध-मल्लालंकारेण सक्कारे सम्माणेह, मत्थयधोयाओ करेइ, पुत्ताणुपुत्तियं वित्तिं कप्पेइ, कप्पेत्ता पडिविसज्जेइ ।।
मेहस्स जम्मुस्सवकरण-पदं
-
७६. तए णं सेणिए राया ( पच्चूसकालसमयंसि ? ) कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं क्यासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! रायगिहं नगरं आसिय सम्मज्जिवलित सिंघाडग-तिय-चउवक-पच्चरचउम्मुह महापपहे आसित्त- सित्त सुइ- सम्म रत्यंतरावण- वीहियं मंचाइमंचकलियं णाणाविहराग-ऊसिय-ज्झयपडागाइपडाग मंडियं लाउल्लोइय-महियं गोसीस सरस-रत्तचंदणदद्दर- दिण्णपंचंगुलितलं उवचियवंदणकलसं वंदणघड- सुरुष-तोरणपडिदुवारदेसभायं आसत्तोसत्तविउल- वट्ट-वग्घारिय-मल्लदामकलावं पंचवण्ण सरस सुरभिमुक्क पुष्कपुंजोवयार कलियं कालागुरु-पवर-कुंदुरुक्क तुरुक्क घूव-ज्जांत-मघमर्धेत गंधुदुयाभिरामं सुगंधवरगंधगंधियं गंधवट्टिभूयं नड-गटगजल्ल - मल्ल - मुट्ठिय- वेलंबग - कहकहग - पवग-लासग-आइक्खगलेख-मंत्र- तूइल्ल तुंबवीणिय- अणेगतालावरपरिगीयं करेह, कारवेह य, चारगपरिसोहणं करेह, करेता माणुम्भाणवणं करेह,
Jain Education International
२४
नायाधम्मकहाओ
और अलंकारों का उपयोग करती हुई, सुखपूर्वक गर्भ का परिवहन करने लगी
मेघ का जन्म वर्धापन पद
७३. धारिणी देवी ने पूरे नौ मास और साढ़े सात दिन बीतने पर अर्धरात्रि के समय, सुकुमार हाथ-पांव वाले यावत् सर्वांग सुन्दर बालक को जन्म दिया ।
७४. उन अंगपरिचारिकाओं ने देखा कि धारिणी देवी ने नौ मांस पूरे होने पर यावत् सर्वांग सुन्दर बालक को जन्म दिया है। यह देखकर वे शीघ्रता, त्वरता, चपलता और उतावलेपन से जहां राजा श्रेणिक था, वहां आई। वहां आकर जय-विजय की ध्वनि से राजा श्रेणिक का वर्धापन किया। वर्धापन करके दोनों हथेलियों से निष्यन्न संपुट आकार वाली अञ्जलि को सिर के सम्मुख घुमाकर मस्तक पर टिका कर इस प्रकार कहा-“देवानुप्रिय । धारिणी देवी ने नौ मास पूरे होने पर यावत् सर्वांग सुन्दर बालक को जन्म दिया है।
इसलिए हम देवानुप्रिय को प्रिय निवेदित करती हैं। आप प्रेय का अनुभव करें।'
७५. उन अंगपरिचारिकाओं से यह अर्थ सुनकर, अवधारण कर हृष्ट-तुष्ट हुए राजा श्रेणिक ने उन अंग परिचारिकाओं को मधुर वचनों से तथा विपुल पुष्प, वस्त्र, गंधचूर्ण, माला एवं अलंकारों से सत्कृत और सम्मानित किया। उनके मस्तक से दासत्व - 'दासचिह्न' को धो डाला । ७८ उनके निर्वाह के लिए पुत्र-पौत्र-परम्परा तक जीविका की व्यवस्था की। ऐसा कर उन्हें प्रतिविसर्जित कर दिया ।
मेघ का जन्मोत्सव -करण पद
७६. राजा श्रेणिक ने (प्रभात काल के समय) कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया, बुलाकर इस प्रकार कहा -- देवानुप्रियो ! शीघ्र ही राजगृह नगर को, उसके दोराहों, तिराहों, चौराहों, चौकों, चतुर्मुखों, राजमार्गों और मार्गों में जल का छिड़काव कर बुहार झाड़, गोबर से लीपकर साफ-सुथरा करवाओ। उसकी गलियों और आपण-वीथियों को सामान्य और विशेष जल का छिड़काव कर बुहार झाड़ साफ-सुथरा करवाओ। मंच और अतिमंच स्थापित करवाओ। रंग-बिरंगे ऊंचे ध्वज, पताका और अतिपताकाएं फहराओ । भूप्रांगण को गोबर से लीपाओ । भीतों को धुलकाओ । उन पर गोशीर्ष और सरस रक्तचन्दन के ठप्पे (पांचों अंगुलियों समेत हथेलियों के छापे ) लगवाओ। मंगल कलश स्थापि करवाओ। सिंहद्वार और प्रतिद्वारों पर भली भांति मंगल कलश रखवाओ। उन्हें ऊपर से नीचे तक लटकती हुई, विपुल वृत्ताकर पुष्प मालाओं के समूह से सजाओ उसको विकीर्ण पंचर, सरस, सुरभिमय पुष्पपुञ्जके उपचार से युक्त, काली अगर, प्रवर कुन्दुरु
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org