Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
नायाधम्मकहाओ
दुवे कुम्मगा आहारत्थी आहारं गवेसमाणा सनियं-सणियं उत्तरति तस्सेव मयंगतीरद्दहस्स परिपेरतेणं सव्वओ समंता परिघोलमाणापरिघोलमाणा वित्तिं कप्पेमाणा विहरति ।।
१२५
पावसियालगाणं आहारगवेसण-पदं
८. तयानंतरं च णं ते पावसियालगा आहारत्थी आहारं यवेसमाणा मालुयाकच्छगाओ पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मयंगतीरद्दहे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छिता तस्सेव मयंगतीरद्दहस्स परिपेरंतेणं परिघोलमाणा- परिघोलमाणा वित्तिं कप्पेमाणा विहरति ।।
९. तए णं ते पावसियालगा ते कुम्मए पासंति, पासित्ता जेणेव ते कुम्मए तेणेव पहारेत्य गमणाए ।
कुम्माणं साहरण-पदं
१०. तए णं ते कुम्ममा ते पावसियालए एज्जमाणे पासंति, पासित्ता भीया तत्था तसिया उव्विग्गा संजायभया हत्ये य पाए य गीवाओ य एहिं सएहिं काहिं साहरंति, साहरित्ता निच्चला निप्फंदा तुतिणीया चिति ।
११. तए णं ते पावसियालगा जेणेव ते कुम्मगा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिता ते कुम्मए सव्वजो समता उव्वतेति परियति आसारेंति संसारेंति चालेंति घट्टेति फर्देति खोर्भेति नहेहिं आलुपति दंतेहि य अक्खोडेंति, नो चेव णं संचाएंति तेसिं कुम्मगाणं सरीरस्स किंचि आवाहं वा वाबाहं वा उप्पाइए छविच्छेयं वा करेत्तए ।
१२. तए णं ते पावसियालगा ते कुम्मए दोच्चपि तच्चपि सब्बओ समंता उव्वतेति परियत्तेति आसारेति संसारेति चालेंति घट्टेति फति खोति नहिं आलुंपति दंतेहि य अक्खोडेंति, नो चेव णं संचाएंति तेसिं कुम्मगाणं सरीरस्स किंचि आबाहं वा वाबाहं वा उप्पाइत्तए छविच्छेयं वा करेत्तए, ताहे संता तंता परितंता निव्विण्णा समाणा सणियं-सणियं पच्चोसक्कति, एगंतमवक्कमति, निच्चता निष्कंदा तुसिणीया संचिति ।।
अगुत्त- कुम्मस्स मच्चु -पदं
१३. तए णं एगे कुम्मए ते पावसियालए चिरगए दूरंगए जाणित्ता सणियं सणियं एवं पायं निच्छुभद्र ।।
Jain Education International
चतुर्थ अध्ययन : सूत्र ७-१३
पुनः अपने-अपने घरों में लौट आए, तब दो आहारार्थी छु की खोज में धीरे-धीरे मृतगंगातीरहृद से उतरे। उसी मृतगंगातीरहृद के परिपार्श्व में चारों ओर घूमते-घूमते जीवन यापन करते हुए विहार करने लगे ।
दुष्ट शृगालों द्वारा आहार- गवेषण पद
८. तदनन्तर आहारार्थी वे दुष्ट शृगाल आहार की खोज करते करते उस मालुकाकक्ष से बाहर निकले। बाहर निकलकर जहां मृतगंगातीर हृद था, वहां आए। वहां आकर मृतगंगातीरहद के परिपार्श्व में घूमते-घूमते जीवन-यापन करते हुए विहार करने लगे ।
९. तब उन दुष्ट भृगालों ने उन कछुओं को देखा। देखकर जहां वे कछुए थे वहीं जाने का संकल्प किया ।
कूर्मों द्वारा संहरण-पद
१०. उन कछुओं ने उन दुष्ट शृगालों को आते हुए देखा, देखकर भीत, त्रस्त, तृषित, उद्विग्न और भयाक्रान्त हो अपने हाथ-पांव एवं गर्दन को अपने-अपने शरीर में संहुत कर लिया। संहृत कर निश्चल, निस्पंद और मौन हो गए।
"
११. वे दुष्ट भृगाल, जहां वे कछुए थे वहां आए। वहां आकर उन कछुओं को चारों से उलटा, पलटा, सरकाया दूर तक सरकाया, चलाया, स्पर्श किया, स्पन्दित किया, क्षुभित किया। नर्सों से नोचा, दांतों से खींचा, पछाड़ा फिर भी वे उन कछुओं के शरीर में किंचित् भी आबाधा या विबाधा उत्पन्न करने में और छविच्छेद (अंगभंग) करने में समर्थ नहीं हुए।
१२. तब उन दुष्ट भृगालों ने दूसरी-तीसरी बार भी उन कछुओं को चारों ओर से उलटा, पलटा, सरकाया, दूर तक सरकाया, चलाया, स्पर्श किया, स्पन्दित किया, शुभित किया, नखों से नोचा, दांतों से खींचा, पछाड़ा फिर भी वे उन कछुओं के शरीर में किंचित् भी आवाधा या विवाधा उत्पन्न करने में और छविच्छेद करने में समर्थ नहीं हुए तो वे श्रान्त, क्लान्त, परिक्लान्त और उदास होकर धीरे-धीरे पीछे सरक गए, एकान्त में चले गए और निश्चल निस्पंद तथा मौन हो गए।
अगुप्त कूर्म का मृत्यु- पद
चले
१३. उन दुष्ट भृगालों को गए बहुत समय हो चुका और वे बहुत दूर गए, यह जानकर एक कछुए ने धीरे-धीरे अपने एक पांव को बाहर निकाला ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org