Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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टिप्पण
सूत्र-४०
१. चूर्णयोग--स्तम्भन, वशीकरण आदि के लिए किया जाने वाला १. समिति और गुप्ति के दो वर्गीकरण मिलते हैं--
औषधियों के चूर्ण का प्रयोग। (अ) उत्तराध्ययन में आठ समितियां बतलाई गई हैं--
औषधि आदि के द्वारा बनाया गया वासक द्रव्य । वशीकरण आदि १. ईर्या समिति, भाषा समिति, एषणा आदि समितियां ।' के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। स्तम्भन के द्वारा व्यक्ति को जड़वत (ब) दूसरे वर्गीकरण में पांच समितियां और तीन गुप्तियों का उल्लेख विवेकशून्य कर दिया जाता है। है--१. ईर्या समिति, भाषा समिति आदि।
२. मन्त्रयोग--मन्त्र का प्रयोग। प्रस्तुत सूत्र में प्रथम वर्गीकरण के अनुसार मन, वचन और काय ३. कार्मणयोग--मन्त्र आदि योगविद्या । मूलकर्म-मंत्र, औषधि आदि के समिति का उल्लेख है।
द्वारा वशीकरण आदि का प्रयोग।
४. कर्मयोग--कम्म शब्द के दो संस्कृत रूप किए जा सकते हैं--काम्य सूत्र-४३
और कर्म। इन दोनों का तात्पर्यार्थ मोहनकर्म किया जा सकता है। यह २. (सूत्र ४३)
सम्मोहन की विद्या है। इसके द्वारा व्यक्ति को सम्मोहित कर अपनी (अ) तंत्रशास्त्र में कामना की पूर्ति के लिए कर्म का विधान है। इच्छानुसार कार्य करवाया जा सकता है। उसके दो वर्गीकरण मिलते हैं--
५. हृदयोड्डापन-कायोड्डापन--ये दोनों मोहनकर्म के अन्तर्गत प्राचीन वर्गीकरण के अनुसार कर्म के दस प्रकार हैं--शान्तिकर्म, आते हैं। पुष्टिकर्म, आकर्षणकर्म, मोहनकर्म, वशीकरणकर्म, जम्भणकर्म, उच्चाटनकर्म, ६. आभियोगिक--दूसरे को अभिभूत अथवा पराजित करने वाला स्तम्भनकर्म, विद्वेषणकर्म और मारण कर्म।
प्रयोग। अर्वाचीन वर्गीकरण के अनुसार कर्म के छह प्रकार हैं--शान्तिकर्म, आकर्षणकर्म, वशीकरणकर्म, उच्चाटनकर्म, स्तम्भनकर्म और मरणकर्म ।
सूत्र-५६ (ब) मंत्र और तंत्र से संबंधित अनेक प्रयोगों का उल्लेख प्रस्तुत ३. राजलक्षण सम्पन्न (रायलक्खणसंपन्ने) प्रकरण में किया गया है--
____सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार राजा के लक्षण, चक्र स्वस्तिक, चूर्णयोग, मंत्रयोग, कार्मणयोग काम्ययोग, हृदयोड्डापन, कायोड्डापन, अंकुश आदि होते हैं और योग्यता की दृष्टि से त्याग, सत्य, शौर्य आदि आभियोगिक, वशीकरण, कौतुकर्म ओर भूतिकर्म।
गुण हैं।
१. उत्तरज्झयणाणि २४/३ २. वही २४/१ ३. भारतीय तंत्र विद्या, पृ. ६६, ७४ ४. ज्ञातावृत्ति, पत्र-१९५--चुण्णजोए त्ति--द्रव्यचूर्णानां योग: स्तम्भनादि
कर्मकारी। ५. उत्तराध्ययन बृहवृत्ति पत्र-४८९--राजेव राजा तस्य लक्षणानि
चक्रस्वस्तिकाकुशादीनि त्यागसत्यशौर्यादीनि वा।
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