Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
एयारूवं गोण्णं गुणनिप्फण्णं नामधेज्जं करेंति । जम्हा णं अम्हं एस दारए पंचण्हं पंडवाणं पुत्ते दोवईए देवीए अत्तए, तं होउ णं इमस्स दारगस्स नामधेज्जं पंडुसेणे-पंडुसेणे।।
सोलहवां अध्ययन : सूत्र ३०६-३१५ गुणानुरूप, गुणनिष्पन्न नाम रखा--क्योंकि हमारा यह बालक पांच पाण्डवों का पुत्र और द्रौपदी देवी का आत्मज है, अत: हमारे इस बालक का नाम पाण्डुसेन हो! पाण्डुसेन!
३०७. तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नामधेज्जं करेंति पुंडुसेणत्ति॥
३०७. इस प्रकार माता-पिता ने उस बालक का नाम पाण्डुसेन रखा।
३०८. तए णं तं पंडुसेणं दारयं अम्मापियरो साइरेगट्ठवासजायगं चेव
सोहणसि तिहि-करण-मुहुर्तसि कलायरियस्स उवणेति ।।
३०८. जब बालक पाण्डुसेन कुछ अधिक आठ वर्ष का हुआ तब माता-पिता ____ शुभ तिथि, करण और मुहूर्त में उसे कलाचार्य के पास ले गये।
३०९. तए णं से कलायरिए पंडुसेणं कुमारं लेहाइयाओ गणियप्पहा- णाओ सउणल्यपज्जवसाणाओ बावत्तरिंकलाओ सत्तओय अत्थओ य करणओ य सेहावेइ सिक्खावेइ जाव अलंभोगसमत्थे जाए। जुवराया जाव विहरइ॥
३०९. कलाचार्य ने पाण्डुसेन कुमार को लिपि-विज्ञान, गणित प्रधान से
लेकर शकुन रुत पर्यन्त बहत्तर कलाएं, सूत्र, अर्थ और क्रियात्मक रूप से पढायी और उनका अभ्यास करवाया यावत् वह पूर्ण भोग समर्थ हुआ यावत् वह युवराज बनकर विहार करने लगा।
पंडवाणं दोवईए य पव्वज्जा-पदं ३१०. थेरा समोसढा । परिसा निग्गया। पंडवा निग्गया। धम्मं सोच्चा
एवं वयासी--जं नवरं-देवाणुप्पिया! दोवई देविं आपच्छाओ। पंडुसेणं च कुमारं रज्जे ठावेमो। तओ पच्छा देवाणुप्पियाणं अंतिए मुडे भवित्ता णं अगाराओ अणगारियं पव्वयामो।
अहासुहं देवाणुप्पिया!
पाण्डवों और द्रौपदी का प्रव्रज्या-पद ३१०. स्थविर समवसृत हुए। जन-समूह ने निर्गमन किया। पाण्डवों ने भी निर्गमन किया। धर्म सुनकर पाण्डवों ने इस प्रकार कहा--विशेष--देवानुप्रिय! हम द्रौपदी देवी से पूछते हैं। पाण्डुसेन कुमार को राज्य पर स्थापित करते हैं। उसके पश्चात् देवानुप्रिय के पास मुण्ड हो अगार से अनगारता में प्रव्रजित होंगे।
जैसा सुख हो देवानुप्रियो ।
३११. तए णं ते पंच पंडवा जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छंति,
उवागच्छित्ता दोवई देविं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी--एवं खलु देवाणुप्पिए! अम्हेहिं राणं अंतिए धम्मे निसंते जाव पव्वयामो। तुम णं देवाणुप्पिए! किं करेसि?
३११. वे पांचों पाण्डव जहां उनका अपना प्रासाद था वहां आये। वहां
आकर द्रौपदी देवी को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा--देवानुप्रिये हमने स्थविरों से धर्म सुना है यावत् हम प्रव्रजित होते हैं। देवानुप्रिये तुम क्या करोगी?
३१२. तए णं सा दोवई ते पंच पंडवे एवं वयासी--जइ गं तुन्भे देवाणुप्पिया! संसारभउब्विग्गा जाव पव्वयह, मम के अण्णे आलबे वा आहारे वा पडिबंधे वा भविस्सइ? अहं पि य णं संसारभउव्विग्गा देवाणुप्पिएहिं सद्धिं पव्वइस्सामि ।।
३१२. द्रौपदी देवी ने उन पांचों पाण्डवों से इस प्रकार कहा--देवानुप्रियो
यदि तुम संसार के भय से उद्विग्न हो यावत् प्रव्रजित होते हो तो मेरे लिए दूसरा कौन आलम्बन, आधार अथवा प्रतिबन्ध होगा। मैं भी संसार के भय से उद्विग्न हूं और देवानुप्रियो के साथ प्रव्रजित होऊंगी।
३१३. तए णं ते पंच पंडवा कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं
वयासी--खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! पंडुसेणस्स कुमारस्स महत्यं महग्धं महरिहं विउलंरायाभिसेहं उवट्ठवेह । पंडुसेणस्स अभिसेओ जाव राया जाए जाव रज्जं पसाहेमाणे विहरइ।
३१३. पांचों पाण्डवों ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार
कहा--देवानुप्रियो! शीघ्र ही पाण्डुसेन कुमार के लिए महान अर्थवान् महामूल्यवान और महान अर्हता वाले विपुल राज्याभिषेक की उपस्थापना करो। पाण्डुसेन का अभिषेक किया यावत् वह राजा बन गया यावत् वह राज्य का प्रशासन करता हुआ विहार करने लगा।
३१४. तए णं ते पंच पंडवा दोवई य देवी अण्णया कयाइ पंडुसेणं
रायाणं आपुच्छति॥
३१४. किसी समय पांचों पाण्डव और द्रौपदी देवी ने राजा पाण्डुसेन से
प्रव्रजित होने के लिए पूछा।
३१५. तए णं से पंडुसेणे राया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं
३१५. राजा पाण्डुसेन ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। उन्हें बुलाकर इस
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