Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 455
________________ नायाधम्मकहाओ ४२९ चक्कागपिट्ठवण्णा, सारसवण्णा य हंसवण्णा य केइ। केइत्थ अब्भवण्णा, पक्कतल-मेघवण्णा य बाहुवण्णा केइ ॥ १/१७/१४/३ चक्खिंदिय-दुईतत्तणस्स अह एत्तिओ हवइ दोसो। जं जलणमि जलते, पडइ पयंगो अबुद्धीओ ॥ १/१७/३६/४ चलचवलकुंडलधरा, सच्छंदविउब्वियाभरणधारी। देविंददाणविंदा, वहति सीयं जिणिंदस्स ॥ १/८/२१४/२ छलिय अवयक्खंतो, निरवयक्खो गओ अविग्घेणं। तम्हा पवयणसारे, निराक्यक्खेण भवियव्यं ॥ १/८/४४/१ जणिय-पमाओ साहू, हायंतो पइदिणं खमाईहिं। जायइ नट्ठचरित्तो, ततो दुक्खाइ पावेइ ।। १/१०/६/३ जह अडवि-नियर-नित्थरण-पावणत्यं तएहिं सुयमसं। भुत्तं तहेह साहू, गुरुण आणाइ आहारं ॥ १/१८/६२/४ जह उभयवाय-जोगे, सव्वसमिद्धी वणस्स संजाया। तह उभयवयण-सहणे सिवमग्गाराहणा पुण्णा ॥ १/११/१०/७ जह उभयवाय-विरहे, सव्वा तरूसंयया विणगृत्ति। अणिमित्तोभय-मच्छर-रूवेह विराहणा तह य ॥ १/११/१०/६ जह कुसुमाइ-विणासो, सिवमग्ग-विराहणा तहा णेया। जह दीववायु-जोगे, बहु इड्डी ईसि य अणिड्डी ॥ १/११/१०/३ जह चंदो तह साहू, राहुबरोहो जहा तह पमाओ। वण्णाइगुणगणो जह, तहा खमाइसमणधम्मो ॥ १/१०/६/१ जह जलहिवाय-जोगे, थेविड्डी बहुयरा अणिड्डी य। तह परपक्खमणे, आराहणमीसि बहु इयरं ॥ १/११/१०/५ जह ते कालियदीवा, णीया अण्णत्थ दुहगणं पत्ता। तह धम्म-परिब्भट्ठा, अधम्मपत्ता इहं जीवा ॥ १/१७/३७/५ जह तेण तेसि कहिया, देवी दुक्खाण कारणं घोरं तत्तो चिय नित्थारो, सेलगजक्खाउ नन्नत्तो ॥ १/६/५४/३ जह तेसि तरियव्वो, रूद्दसमुद्दो तहेह संसारो। जह तेसि सगिहगमणं, निव्वाणगमो तहा एत्थ ॥ १/६/५४/६ जह तेहिं भीएहिं, दिट्ठो आघायमंडले पुरिसो। संसारदुक्खभीया, पासंति तहव धम्मकहं ॥ १/८/५४/२ परिशिष्ट-२ जह दावद्दव-तरुणो, एवं साहूं जहेह दीविच्चा। वाया तह समणाद्वय, सपख-वयणाई दुसहाई ॥ १/११/१०/१ जह देवीए अक्खोहो, पत्तो सट्टाण-जीवियसुहाई। तह चरणठिओ साहू, अक्खोहो जाई निव्वाणं ॥ १/६/५४/६ जह मल्लिस्स महाबल-भवम्मि तित्थयरनामबंधे वि। तव-विसय-थेवमाया जाया जुवइत्त-हेउत्ति ॥ १/७/२३६/२ जह मिउलेवालित्तं, गुरूयं तुंबं अहो वयइ। एवं कय-कम्मगुरू, जीवा वच्चंति अहरगई ॥ १/६/५/१ जह रयणदीवदेवी, तह एत्थं अविरई महापावा। जह लाहत्थी वणिया, तह सहकामा इहं जीवा ॥ १/८/५४/१ जह रोहिणी उ सुण्हा, रोवियसाली जहत्थमभिहाणा। वड्डित्ता सालिकणे, पत्ता सव्वस्स सामित्तं ॥ १/७/४४/११ जह वा रक्खियबहुया, रक्खियसालीकणा जहत्थक्खा। परिजणमण्णा जाया, भोगसुहाइं च संपत्ता ॥ १/७/४४/८ जह वा सा भोगवती, जहत्थनामोवभुत्तसालिकणा। पेसणविसेसकारित्तणेण, पत्ता दुहं चेव ॥ १/७/४४/५ जह सच्छंदविहारो, आसाणं तह इहं वरमुणीणं। जर-मरणाइ-विवज्जिय, सायत्ताणंदनिव्वाणं ॥ १/१७/३७/३ जह सद्दाइ-अगिद्धा, पत्ता नो पासबंधणं आसा। तह विसएसु अगिद्धा, बझंति न कम्मणा साहू ॥ १/१७/३७/२ जह सद्दाइसु गिद्धा, बद्धा आसा तहेव विसयरया। पावेंति कम्मबंधं, परमासुह-कारणं घोरं ॥ १/१७/३७/४ जह सा उज्झियनामा, उज्झियसाली जहत्थमभिहाणा। पेसणगारितेणं, असंखदुक्खक्खणी जाया ॥ १/७/४४/२ जह सामुद्दय-वाया, तहण्णतित्थाइ-कडुयवयणाई। कुसुमाइं संपया जह, सिवमग्गाराहणा तह उ । १/११/१०/२ जह सेट्ठी तह गुरुणो, जह नाइ-जणो तहा समणसंघो। जह बहुया तह भव्वा, जह सालिकणा तह वयाई॥ १/७/४४/१ जह सेलगपट्ठाओ, भट्ठो देवीए मोहियमई उ। सावय-सहस्सपउरम्मि, सायरे पाविओ निहणं ॥ १/८/५४/७ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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