Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 470
________________ परिशिष्ट-४ ४४४ नायाधम्मकहाओ सावय तोता सावय सवहसाविय सासग साहरित्ता साहसिय सिंग सिंगारागार सिंघाड़ग सिंघाण सिभिय सिद्धत्थय सिलिंघ इन्द्रगोप श्मशान सुकुमार शूली पर चढ़ा हुआ पसीना दलदल रोगशमन का एक प्रयोग सौगन्धिक कमल कटिसूत्र खेदखिन्न होना पुकारता हुआ अत्यधिक जंगली जानवर श्रावक सौगंध दिलाने की क्रिया रांगा संहृत कर बिना सोचे कार्य करने वाला श्रृंग श्रृंगारघर दो राहों वाला (दोराहा) नाक का मैल श्लेष्म सरसों कुकुरमुत्ता पर्वत का उपरि भाग जलकण शिष्य सिर, मस्तक सिंहनिष्कीड़ित तप सुराख वीर्य शुक्लध्यान कुत्ता धागा सूत्र रूप में अतीव कोमल बहुमूल्य सिहर १/१/१५६ सुय १/५/१२५ सुरगोप १/१/४४ सुसाण १/१/३३ सूमाल १/४/१० सूलाइग १/२/११ सेय १/६/२० सेय १/१/१७ सेयण १/१/३३ सोगंधिय १/१/१०६ सोणिसुत्तरा १/१/१७ सोयमाण १/१/२४ हक्कारेमाण (दे.) १/१/३३ हडाहड (दे.) १/१/१५८ हत्थ १/१/१५६ हय १/१/२१३ हयाणी १/१/१५३ हरिरेषु १/८/२० हरियालिय १/१/२६ हव्व १/१/१०६ हिमवंत १/१/१४३ हिय १/१/१७८ हीलणिज्ज १/३/१० १/१/८५ हुडुवक १/१/५ हुयवह १/१/२४ हेरुयाल (दे.) १/१/२४ १/८/२० १/२/११ १/१/१५ १/६/२७ १/१/१०५ १/१/१६० १/१३/३० १/१३/१७ १/१७/१४ १/८/१० १/१८/४५ १/१६/२६ १/१/१६० १/१/३३ १/१/३३ १/१७/१८ १/१/२७ १/१/५७ १/१/१४ १/१/५७ १/३/२४ सीयर सीस सीर सीहनिक्कीलिय अश्व अश्वसेना नीलरजकण सुइ सुक्क सुक्क सुणग शीघ्र हिमालयपर्वत हृदय गुरु या कुल की न्यूनता बताना वाद्य विशेष आग कुपित करना सुत्त सुत्तओ सुमउय सुमहग्ध १/१/३३ १/१/१५६ १/८/१४६ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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