Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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अठारहवां अध्ययन : सूत्र २८-३३
३७८ चोरनिगडीओ य सिक्खाविए। तं सेयं खलु अम्हं देवाणुप्पिया! चिलायं तक्कर सीहगुहाए चोरपल्लीए चोरसेणावइत्ताए अभिसिचित्तए त्ति कटु अण्णमण्णस्स एयमटुं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता चिलायं सीहगुहाए चोरपल्लीए चोरसेणावइत्ताए अभिसिंचंति।।
नायाधम्मकहाओ हमारे लिए उचित है कि हम चिलात तस्कर का सिंहगुफा चोरपल्ली के चोर सेनापति के रूप में अभिषेक करें--इस प्रकार उन्होंने परस्पर यह प्रस्ताव स्वीकार किया। स्वीकार कर चिलात का सिंहगुफा चोरपल्ली के चोर सेनापति के रूप में अभिषेक किया।
२९. तए णं से चिलाए चोरसेणावई जाए--अहम्मिए अहम्मिटे
अहम्मक्खाई अहम्माणुए अहम्मपलोइ अहम्मपलज्जणे अहम्मसीलसमुदायारे अहम्मेण चेव वित्तिं कप्पेमाणे विहरइ।।
२९. वह चिलात चोर सेनापति बन गया। वह अधार्मिक, अधर्मिष्ठ,
अधर्मख्याति, अधर्म का अनुगमन करने वाला, अधर्म-प्रलोकी, अधर्मानुरक्त, अधर्ममय शील और समाचरण वाला था। वह अधर्म से ही जीवन निर्वाह करता हुआ विहार करता था।
३०. तए णं से चिलाए चोरसेणावई चोरनायगे बहूणं चोराण य
पारदारियाण य गंठिभेयगाण य संधिच्छेयगाण य खत्तखणगाण य रायावगारीण य अणधारगाण य बालधायगाण य वीसंभघायगाण य जूयकाराण य खंडरक्खाण य अण्णेसिं च बहूणं छिण्ण-भिण्ण-बाहिराहयाणं कुडगे यावि होत्था॥
३०. वह चोर सेनापति, चोर नायक चिलात बहुत से चोरों, पारदारिकों,
ग्रन्थि-भेदकों (गिरहकटों), सेंध लगाने वालों, भीत फोड़कर चोरी करने वालों, राज-द्रोहियों, कर्जदारों, बाल-हत्यारों, विश्वासघातकों, जुआरियों, अनधिकृत सरकारी भूमि पर अधिकार करने वालों तथा अन्य अनेक अपराधियों--जिनके अंग छिन्न-भिन्न कर दिये गये हों अथवा जिन्हें निर्वासित कर दिया गया हो--उन सबके लिए वेणुवन के समान आश्रयभूत था।
३१. से णं तत्थ सीहगुहाए चोरपल्लीए पंचण्हं चोरसयाणं आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ॥
३१. वह उस सिंहगुफा चोरपल्ली में पांच सौ चोरों का अधिपतित्व,
पुराधिपतित्व, स्वामित्व, भर्तृत्व, महत्तरत्व तथा आज्ञा, ऐश्वर्य और सेनापतित्व करता हुआ एवं उनकी सुरक्षा करता हुआ विहार करने
लगा।
३२. तए णं तत्थ से चिलाए चोरसेणावई रायगिहस्स नयरस्स
दाहिणपुरथिमिल्लं जणवयं बहूहिं गामघाएहि य नगरपाएहि य गोगहणेहि य बंदिग्गहणेहि य पंथकुट्टणेहि य खत्तखणणेहि य उवीलेमाणे-उवीलेमाणे विद्धंसेमाणे-विद्धसेमाणे नित्थाणं निद्धणं करेमाणे विहरइ॥
३२. वह चोर सेनापति चिलात बहुत से ग्राम-घात, नगर-घात, गायों को
चुराना, मनुष्यों को धन लूटकर बन्दी बना लेना, पथिकों को मारना, भीत फोड़कर चोरी करना इत्यादि दुष्कर्मों के द्वारा राजगृह के दक्षिण-पूर्वी जनपद को उत्पीड़ित और विध्वस्त करता हुआ तथा वहां के निवासियों को बेघर और निर्धन करता हुआ विहार करने लगा।
चिलायस्स धणस्स गिहे चोरिय-पदं ३३. तए णं से चिलाए चोरसेणावई अण्णया कयाइ विपुलं
असण-पाण-खाइम-साइमं उक्क्खडाक्ता ते पंच चोरसए आमतेइ तओ पच्छा व्हाए क्यबलिकम्मे भोयणमंडसि तेहिं पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं सुरं च मज्जं च मंसंच सीधुं च पसन्नं च आसाएमाणे विसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुजेमाणे विहरइ, जिमियभुत्तुत्तरागए ते पंच चोरसए विपुलेणं धूव-पुप्फ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता एवं वयासी--एवं खलु देवाणुप्पिया! रायगिहे नयरे धणे नामं सत्थवाहे अड्ढे । तस्स णं घूया भद्दाए अत्तया पंचण्हं पुत्ताणं अणुमग्गजाइया सुंसुमा नामंदारिया-अहीणा जाव सुरूवा। तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया! धणस्स सत्थवाहस्स गिहं विलुपामो।
चिलात द्वारा धन के घर में चोरी-पद ३३. किसी समय उस चोर सेनापति चिलात ने विपुल अशन, पान, खाद्य
और स्वाद्य तैयार करवा कर उन पांच सौ चोरों को आमन्त्रित किया। उसके पश्चात् उसने स्नान और बलिकर्म किया। भोजन मण्डप में उन पांच सौ चोरों के साथ विपुल अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य, सुरा, मद्य, मांस, सीधु और प्रसन्ना का आस्वादन करता हुआ, विशेष स्वाद लेता हुआ, सबको बांटता हुआ और खाता हुआ विहार करने लगा। ___ भोजनोपरान्त अपने स्थान पर आकर उसने पांच सौ चोरों को विपुल, धूप, पुष्प, गन्ध-चूर्ण, माला और अंलकारों से सत्कृत किया। सम्मानित किया। सत्कृत-सम्मानित कर इस प्रकार बोला--देवानुप्रियो! राजगृह नगर में 'धन' नाम का सार्थवाह है। वह
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