Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 402
________________ अठारहवां अध्ययन : सूत्र १६-२१ ३७६ नायाधम्मकहाओ चिलायस्स दुव्वसण-पवत्ति-पदं चिलात का दुर्व्यसन-प्रवृत्ति-पद १६. तए णं से चिलाए दासचेडे साओ गिहाओ निच्छूढे समाणे १६. अपने घर से निकाल दिये जाने पर वह दासपुत्र चिलात राजगृह रायगिहे नयरे सिंघाडग-तिग-चउक्क चच्चर-चउम्मुह-महापह- नगर में दोराहों, तिराहों, चोराहों, चौकों, चतुर्मुखों, राजमार्गों और मार्गों पहेसु देवकुलेसु य सभासु य पवासु य जूयखलएसु य वेसाघरएसु में तथा देवकुलों में, सभाओं में, प्रपाओं में, जुए के अड्डों में, वेश्याय पाणघरएसु य सुहंसुहेणं परिवट्टइ।। घरों में और मदिरालयों में सुखपूर्वक घूमने लगा। १७. तए णं से चिलाए दासचेडे अणोहट्टिए अणिवारिए सच्छंदमई १७. वह दासपुत्र चिलात बिना किसी रोक-टोक के निरंकुश स्वैरविहारी सइरप्पयारी मज्जप्पसंगी चोज्जप्पसंगी जूयप्पसंगी वेसप्पसंगी तथा मद्य, चौर्य, द्यूत, वेश्या और परस्त्रियों में अतिआसक्त हो गया। परदारप्पसंगी जाए यावि होत्था ।। चोरपल्ली-पदं १८. तए णं रायगिहस्स नयरस्स अदूरसामते दाहिणपुरत्थिमे दिसीभाए सीहगुहा नामं चोरपल्ली होत्था--विसम-गिरिकडग-कोलंब- सण्णिविट्ठा सोकलंक-पागार-परिक्खित्ता छिण्णसेल-विसमप्पवायफरिहोवगूढा एगदुवारा अणेगखंडी विदितजण-निग्गमप्पवेसा अभिंतरपाणिया सुदुल्लभजल-पेरंता सुबहुस्सवि कूवियबलस्स आगयस्स दुप्पहंसा यावि होत्था। चोर-पल्ली पद १८. उस राजगृह नगर के आस-पास आग्नेय कोण में सिंहगुफा नाम की एक चोरपल्ली' थी। वह विषम पर्वतीय मेखला के किनारे पर स्थित, बांस से निर्मित जालमय प्राकार से परिक्षिप्त, टूटे हुए शैल खण्डों के कारण विषम गढ़ों वाली, खाई से अवगूढ, एक द्वार और अनेक खण्डों वाली तथा परिचितों के लिए ही निर्गम और प्रवेश योग्य थी। उसके भीतर जलाशय था। बाहर दूर-दूर तक जल दुर्लभ था। वहां समागत सुविशाल चोर-गवेषक सेना के लिए भी वह दुष्प्रघर्ष थी। १९. तत्थ णं सीहगुहाए चोरपल्लीए विजए नाम चोरसेणावई परिवसई-अहम्मिए अहम्मिटे अहम्मक्खाई अहम्माणुए अहम्मपलोई अहम्मपलज्जणे अहम्मसील-समुदायारे अहम्मेण चेव वित्तिं कप्पेमाणे विहरइ। हण-छिंद-भिंद-वियत्तए लोहियपाणी चडे रुद्दे खुद्दे साहस्सिए उक्कंचण-वंचण-माया-नियडि-कवड-कूड-साइसंपओग-बहुले निस्सीले निव्वए निगुणे निप्पच्चक्खाणपोसहोववासे बहूणं दुप्पय-चउप्पय-मिय -पसु-पक्खि-सरिसिवाणं घायाए वहाए उच्छायणयाए अहम्मकेऊ समुट्ठिए बहुनगर-निग्गय-जसे सूरे दढप्पहारी साहसिए सद्दवेही। १९. उस सिंहगुफा चोरपल्ली में 'विजय' नाम का चोर सेनापति रहता था। वह अधार्मिक, अधर्मिष्ठ, अधर्मख्याति, अधर्म का अनुगमन करने वाला, अधर्म-प्रलोकी, अधर्मानुरक्त, अधर्ममय शील और समाचरण वाला था। वह अधर्म से ही जीवन निर्वाह करता हुआ विहार करता था। वह अपने अनुयायियों को सदा 'मारो-छेदो-भेदो' इस प्रकार प्रेरित करने वाला, लोहित पाणी, चण्ड, रुद्र, क्षुद्र, दुस्साहसी और उत्कुञ्चन, वञ्चना, माया, निकृति, कपट, कूट एवं वक्रता का प्रचुर प्रयोग करने वाला था। वह शील-रहित, व्रत-रहित, गुण-रहित तथा प्रत्याख्यान और पौषधोपवास से शून्य था। वह बहुत से द्विपद, चतुष्पद, मृग, पशु, पक्षी और सरीसृपों के घात, वध और उत्सादन के लिए उदित मानो अधर्ममय केतुग्रह था। उसका यश बहुत नगरों तक पहुंच चुका था। वह शूर, दृढ़ प्रहार करने वाला, साहसिक और शब्द-वेधी था। २०. से णं तत्थ सीहगुहाए चोरपल्लीए पंचण्हं चोरसयाणं आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणा-ईसर-सेणावच्चंकारेमाणे पालेमाणे विहरइ॥ २०. वह उस सिंहगुफा चोरपल्ली में पांच सौ चोरों का अधिपतित्व, पुराधिपतित्व, स्वामित्व, भर्तृत्व, महत्तरत्व तथा आज्ञा, ऐश्वर्य और सेनापतित्व करता हुआ एवं उनकी सुरक्षा करता हुआ विहार करता था। २१. तए णं से विजए तक्कर-सेणावई बहूणं चोराण य पारदारियाण य गंठिभेयगाण य संधिच्छेयगाण य खत्तखणगाण रायावगारीण य अणधारगाण य बालघायगाण य वीसंभघायगाण य जयकाराण य खंडरक्खाण य अण्णेसिंच बहूणं छिण्ण-भिण्ण-बाहिराहयाणं कुडगे यावि होत्था। २१. वह तस्कर सेनापति 'विजय' बहुत से चोरों, पारदारिकों, ग्रन्थि-भेदकों (गिरहकटों), सेंध लगाने वालों भीत फोड़ कर चोरी करने वालों राजद्रोहियों कर्जदारों, बाल-हत्यारों, विश्वासघातकों, जुआरिओं, अनधिकृत सरकारी भूमि पर अधिकार करने वालों तथा अन्य अनेक अपराधियों-- जिनके अंग छिन्न-भिन्न कर दिये गये हो अथवा जिन्हें निर्वासित कर दिया गया हो--उन सबके लिए वेणुवन के समान आश्रयभूत था। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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