Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 432
________________ ४०६ नायाधम्मकहाओ दूसरा श्रुतस्कन्ध, प्रथम वर्ग : सूत्र ५६-६३ तइयं अज्झयणं : अध्ययन ३ रयणी : 'रजनी' ५६. जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं पढमस्स वग्गस्स बिइयज्झयणस्स अयमद्वे पण्णत्ते, तइयस्स णं भते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं के अद्वे पण्णत्ते? ५६. भन्ते! यदि श्रमण भगवान महावीर ने धर्म कथाओं के प्रथम वर्ग के द्वितीय अध्ययन का यह अर्थ प्रज्ञप्त किया है तो भन्ते! तृतीय अध्ययन का श्रमण भगवान महावीर ने क्या अर्थ प्रज्ञप्त किया है? ५७. एवं खलु जंबू! रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सामी समोसढे॥ ५७. जम्बू! राजगृह नगर । गुणशिलक चैत्य । स्वामी समवसृत हुए। ५८. तेणं कालेणं तेणं समएणं रयणी देवी चमरचंचाए रायहाणीए आगया। ५८. उस काल और उस समय चमरचञ्चा राजधानी से रजनी देवी आयी। ५९. भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पुन्वभवपुच्छा। ५९. भन्ते! भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दना की। नमस्कार किया। वन्दना-नमस्कार कर उसके पूर्वभव सम्बन्धी प्रश्न किया। ६०. गोयमाति! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं वयासी--एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं आमलकप्पा नयरी। अंबसालवणे चेइए। जियसत्तू राया। रयणी गाहावई। रयणसिरी भारिया। रयणी दारिया। सेसं तहेव जाव अंतं काहिइ।। ६०. हे गौतम! श्रमण भगवान महावीर ने भगवान गौतम को आमन्त्रित कर इस प्रकार कहा--गौतम! उस काल और उस समय आमलकल्पा नगरी, आम्रशालवन चैत्य, जितशत्रु राजा, रजनी गृहपति, रजनीश्री भार्या और रजनी बालिका थी। शेष राजी के समान यावत् वह सब दुःखों का अन्त करेगी। चउत्थं अज्झयणं : अध्ययन ४ विज्जू : विद्युत ६१. एवं विज्जू वि--आमलकप्पा नयरी। विज्जू गाहावई। विज्जूसिरी ६१. इसी प्रकार विद्युत का वर्णन भी ज्ञातव्य है। आमलकल्पा नगरी। भारिया। विज्जू दारिया। सेसं तहेव।। विद्युत गृहपति। विद्युतश्री भार्या, विद्युत बालिका। शेष पूर्ववत् । पंचमं अज्झयणं : अध्ययन ५ मेहा : मेघा ६२. एवं मेहा वि--आमलकप्पाए नयरीए मेहे गाहावई। मेहसिरी ६२. मेघा का वर्णन भी ज्ञातव्य है--आमलकल्पा नगरी। मेघ गृहपति । भारिया। मेहा दारिया। सेसं तहेव॥ मेघश्री भार्या । मेघा बालिका। शेष पूर्ववत्। ६३. एवं खलु जंबू समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं धम्मकहाणं पढमस्स वग्गस्स अयमढे पण्णत्ते॥ ६३. जम्बू! धर्म के आदिकर्ता यावत् सिद्धिगति संप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकथा के प्रथम वर्ग का यह अर्थ प्रज्ञप्त किया है। Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480