Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 436
________________ दूसरा श्रुतस्कन्ध, चतुर्थ वर्ग सूत्र १ ९ ४१० चउत्थो वग्गो : चतुर्थ वर्ग पढमं अज्झयणं : अध्ययन १ रूया 'रूपा' 1: १. जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं तइयस्स वग्गस्स अयमट्ठे पण्णत्ते, चउत्थस्स णं भंते! वग्गस्स समणेणं भगवया महावीरेण के अड्डे पणते? २. एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं उत्थ वग्गस्स चउप्पण्णं अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा -- पढमे अज्झयणे जाव चउप्पण्णइमे अज्झयणे ।। ३. जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं चउत्थस्स वग्गस्स चउपण्णं अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भते! अज्झयणस्स समणेण भगवया महावीरेण के अट्ठे पण्णत्ते ? ४. एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं जाव परिसा पज्जुवासइ ॥ - ५. तेगं कालेणं तेगं समएणं रूया देवी भूपाणंदा रापहाणी रूपगवडेंसए भवणे रूयगंसि सीहासांसि जहा कालीए तहा, नवरं पुण्यभवे चंपाए पुण्णभद्दे चेइए स्वगगाहावई रूपगसिरी भारिया रूवा दारिया || सेसं तहेव, नवरं भूयाणंद अग्गमहिसित्ताए उववाओ । देसूणं पलिजोवमं ठिई ।। ६. एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं चउत्यस्स वग्गस्स पढमज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते । -त्ति बेमि ॥ २-६ अज्झयणाणि ७. एवं - - सुख्यावि, रूयंसावि, रूयगावईवि, रूयकंतावि, रूयप्पभावि ।। ७-५४ अज्झयणाणि ८. एयाओ चेव उत्तरिल्लाणं इंदाणं वेणुदालिस्स हरिस्सहस्स अग्गिमाणस्स विसिस्स जलप्पमस्स अमितवाहणस्स पभंजणस्स महाघोसस्स भाणियव्वओ ।। ९. एवं तु जंबू समणेणं भगवया महावीरेण धम्मकहाणं चउत्पस्स वग्गस्स अयमट्ठे पण्णत्ते ।। Jain Education International नायाधम्मकहाओ १. भन्ते! यदि श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकथाओं के तृतीय वर्ग का यह अर्थ प्रज्ञप्त किया है तो भन्ते! चतुर्थ वर्ग का श्रमण भगवान महावीर ने क्या अर्थ प्रज्ञप्त किया हैं ? २. जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकथाओं के चतुर्थ वर्ग के चौवन अध्ययन प्रज्ञप्त किए हैं जैसे-- पहला अध्ययन यावत् चौवनवां अध्ययन । ३. भन्ते! यदि श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकथाओं के चतुर्थ वर्ग के चौवन अध्ययन प्रज्ञप्त किए हैं तो भन्ते! प्रथम अध्ययन का श्रमण भगवान महावीर ने क्या अर्थ प्रज्ञप्त किया है? ४. उस काल और उस समय राजगृह में समवसरण जुड़ा यावत् जन-समूह ने पर्युपासना की। ५. उस काल और उस समय रूपा देवी भूतानन्दा राजधानी के रूपकाव भवन में रूपक सिंहासन पर विहार कर रही थी जैसे- काली । विशेष- पूर्वभव में चम्पा का पूर्णभद्र चैत्य रूपक गृहपति रूपकश्री भार्या । रूपा बालिका शेष पूर्ववत् । 1 विशेष--भूतानन्द की अग्रमहिषी के रूप में उपपात । कुछ कम पत्योपम स्थिति । ६. जम्बू! इस प्रकार श्रमण भगवान महावीर ने चतुर्थ वर्ग के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ प्रज्ञप्त किया है। - ऐसा मैं कहता हूं। २-६ अध्ययन ७. इसी प्रकार सुरूपा, रूपांशा, रूपकवती, रूपकान्ता और रूपप्रभा के अध्ययन भी ज्ञातव्य है । ७-५४ अध्ययन ८. इसी प्रकार -- उत्तरदिग्वर्ती इन्द्रों--वेणदाली, हरिस्सह, अग्निमाणव, विशिष्ट, जलप्रभ, अमितवाहन, प्रभंजन और महाघोष की भी देवियां अग्रमहिषियां थीं ऐसा ज्ञातव्य है। -- ९. जम्बू इस प्रकार श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकथाओं के चतुर्थ वर्ग का यह अर्थ प्रज्ञप्त किया है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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