Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
२२. सए गं से विजए चोरसेणावई रायगिहस्स दाहिणपुरत्थिमं जणक्यं बहूहिं गामघाएहि य नगरघाएहि य गोगहणेहि य बंदिग्गहणेहि य पंचकुट्टणेहि य खत्तखणणेहि य उवीलेमाणेउवीलेमाणे विद्धंसेमाणे- विद्धंसेमाणे नित्थाणं निद्धणं करेमाणे बिहर ।।
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अठारहवां अध्ययन सूत्र २२-२८
२२. वह चोर सेनापति विजय बहुत से ग्राम घात, नगर-घात, गायों को चुराना, मनुष्य को धन लूटकर बन्दी बना लेना, पथिकों को मारना, भीत फोड़कर चोरी करना इत्यादिक दुष्कर्मों के द्वारा, राजगृह के दक्षिणपूर्वी जनपद को उत्पीड़ित और विध्वस्त करता हुआ तथा वहां के निवासियों को बेघर और निर्धन करता हुआ विहार करता था।
चिलायस्स चोरपल्ली-गमण-पदं
२३. तए णं से चिलाए दासचेडए रायगिहे बहूहिं अत्थाभिसंकीहि य चोज्जाभिसंकीहि य दाराभिसंकीहि य धणिएहि य जूयकरेहि य परभवमाणे- परभवमाणे रायगिहाओ नगराओ निग्गच्छद निग्गच्छित्ता जेणेव सीहगुहा चोरपल्ली तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता विजयं चोरसेणावई उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ।।
२४. तए णं से चिलाए दासचेडे विजयस्स चोरसेणावइस्स अग्ग-असिलट्ठिग्गाहे जाए यावि होत्था। जाहे वि य णं से विजय चोरसेणावई गामघायं वा नगरघायं वा गोगहणं वा बदिग्गहणं वा पंथकोट्टिं वा काउं वच्चइ ताहे वि य णं से चिलाए दासचेडे सुबहुपि कूक्विलं हय-महिय-पवर वीरघाइय-विवडियचिंध-धपपडागं किच्छोवगयपाणं दिसोदिसीं पडिसेहेइ, पडिसेहेत्ता पुणरवि तळ कपकरजे अगहसमगे सीहगुहं चोरपति हव्यमागच्छइ ।।
२५. तए गं से विजए चोरसेणावई चितायं तक्कर बहूओ चोरविज्जाओ य चोरमंते य चोरमायाओ य चोरनिगडीओ य सिक्खावेइ ।।
विजयस्स मच्चु पदं
२६. तए णं से विजए चोरसेणावई अण्णया कयाइ कालधम्पुणा संजुत्ते यावि होत्या ।।
२७. तए णं ताइं पंचचोरसयाइं विजयस्स चोरसेणावइस्स महया-महया इड्डी-सक्कार-समुदएणं नीहरणं करेंति, करेत्ता बहूई लोइयाई मयकिच्चाई करेति, करेता कालेणं विगयसोया जाया यावि होत्या ।।
चिलायस्स चोरसेणावइत्त-पदं
२८. तए णं ताइं पंचचोरसयाइं अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी -- एवं खलु अम्हें देवाणुप्पिया! विजए चोरसेणावई कालधम्मुणा संजुत्ते । अयं च णं चिलाए तक्करे विजएणं चोरसेणावणा बहूओ चोरविज्जाओ व चोरमते य चोरमायाओ य
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चिलात का चोरपल्ली गमन-पद
२३. वह दासपुत्र चिलात राजगृह में अनेक अर्थ की दृष्टि से आशंका करने वाले, चोरी की दृष्टि से आशंका करने वाले और स्त्रियों की दृष्टि से आशंका करने वाले धनिकों तथा जुआरियों के द्वारा पराभव को प्राप्त होता हुआ राजगृह नगर से निकला। वहां से निकलकर, वह जहां सिंहगुफा चोर-पल्ली थी, वहां आया। वहां आकर चोर सेनापति विजय की अधीनता स्वीकार कर विहार करने लगा।
२४. वह दासपुत्र चिलात चोर सेनापति विजय का प्रधान असि चालक और यष्टि - चालक बन गया। चोर सेनापति विजय जब भी ग्राम घात और नगर-घात करने, गायों को चुराने, मनुष्यों को धन आदि लूटकर बन्दी बनाने अथवा पथिकों की हत्या करने के लिए जाता, तब वह दासपुत्र चिलत सुविशाल चोर गवेषक सेना को हत मयित कर डालता, उसके प्रवर वीरों को यमधाम पहुंचा देता। सेना के चिह्न - ध्वजाओं और पताकाओं को गिरा देता । उसके प्राण संकट में डाल देता और सब दिशाओं से उसके प्रहारों को विफल कर देता। विफल कर वह धन प्राप्त कर कृत-कार्य हो निर्विघ्न शीघ्रता से पुनरपि सिंहगुफा चोरपल्ली में आ जाता ।
२५. वह चोर सेनापति विजय तस्कर - चितात को अनेक चोर विद्याएं, चोर-मंत्र, चोर- मायाएं और चोर-निकृतियां सिखाता था ।
विजय का मृत्यु-पद
२६. किसी समय वह चोर सेनापति विजय कालधर्म को प्राप्त हो गया।
२७. उन पांच सौ चोरों ने महान ऋद्धि और सत्कार - समुदय के साथ चोर सेनापति विजय का निर्हरण किया। निर्हरण कर अनेक लौकिक मृतक कार्य किए और समय आने पर वे शोक मुक्त हो गये।
चिलात का चोर -सेनापतित्व-पद
२८. उन पांच सौ चोरों ने एक-दूसरे को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहा- देवानुप्रियो ! चोर सेनापति विजय कालधर्म को प्राप्त हो गया। चोर सेनापति विजय ने इस बिलात तस्कर को अनेक चोर विद्याएं चोर-मंत्र, चोर-मायाएं और चोर - निकृतियां सिखाई है। अतः देवानुप्रियो !
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