Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नायाधम्मकहाओ
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दूसरा श्रुतस्कन्ध, प्रथम वर्ग : सूत्र ५-१० ५. दाहिणिल्लाणं वाणमंतराणं इंदाणं अग्गमहिसीणं पंचमे वग्गे। ४. असुरेन्द्र के अतिरिक्त, उत्तर दिशावर्ती (भवनपति देवों के) इन्द्रों की ६. उत्तरिल्लाणं वाणमंतराणं इंदाणं अग्गमहिसीणं छठे वग्गे। अग्रमहिषियों का चौथा वर्ग। ७. चंदस्स अपग्महिसीणं सत्तमे वग्गे।
५. दक्षिण दिशावर्ती वानमंतर देवों के इन्द्रों की अग्रमहिषियों का पांचवां ८. सूरस्स अगमहिसीणं अट्ठमे वग्गे।
वर्ग। ९. सक्कस्स अग्गमहिसीणं नवमे वग्गे।
६. उत्तर दिशावर्ती वानमंतर देवों के इन्द्रों की अग्रमहिषियों का छट्ठा १०. ईसाणस्स य अग्गमहिसीणं दसमे वग्गे।
वर्ग। ७. चन्द्रमा की अग्रमहिषियों का सातवां वर्ग। ८. सूर्य की अग्रमहिषियों का आठवां वर्ग। ९. शक्र की अग्रमहिषियों का नौवां वर्ग। १०. ईशान की अग्रमहिषियों का दसवां वर्ग।
६. जइणं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेण धम्मकहाणं
दस वग्गा पण्णत्ता, पढमस्स णं भत्ते! वग्गस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अद्वे पण्णत्ते?
६. भन्ते! यदि धर्म के आदिकर्ता यावत् सिद्धिगति संप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकथाओं के दस वर्ग प्रज्ञप्त किए हैं, तो भन्ते! धर्म के आदिकर्ता यावत् सिद्धिगति संप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने प्रथम वर्ग का क्या अर्थ प्रज्ञप्त किया है?
७. एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेण पढमस्स वग्गस्स पंच अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा--काली, राई, रयणी, विज्जू, मेहा।
७. जम्बू! धर्म के आदिकर्ता यावत् सिद्धिगति संप्राप्त श्रमण भगवान
महावीर ने प्रथम वर्ग के पांच अध्ययन प्रज्ञप्त किए हैं। जैसे-काली, रात्री, रजनी, विद्युत, मेघा।
८. जइ णं भते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स
वग्गस्स पंच अज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अटे पण्णत्ते?
८. भन्ते! यदि धर्म के आदिकर्ता यावत् सिद्धिगति संप्राप्त श्रमण भगवान
महावीर ने प्रथम वर्ग के पांच अध्ययन प्रज्ञप्त किए हैं, तो भंते! धर्म के आदिकर्ता यावत् सिद्धिगति संप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ प्रज्ञप्त किया है?
९. एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गुणसिलए
चेइए। सेणिए राया। चेल्लणा देवी। सामी समोसढे। परिसा निग्गया जाव परिसा पज्जुवासइ।
९. जम्बू! उस काल और उस समय राजगृह नगर था। गुणशिलक चैत्य
था। श्रेणिक राजा था। चेलणा देवी थी। स्वामी समवसृत हुए। जन-समूह ने निर्गमन किया यावत् जन-समूह ने पर्युपासना की।
कालीदेवी-पदं १०. तेणं कालेणं तेणं समएणं काली देवी चमरचंचाए रायहाणीए
कालिवडेंसगभवणे कालसि सीहासणसि चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं चउहिं महयरियाहिं सपरिवाराहिं, तिहिं परिसाहिं सत्तहिं अणिएहिं सत्तहिं अणियाहिवईहिं सोलसहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं अण्णेहिं य बहूहि कालिवडिंसय-भवणवासीहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहि य सद्धि संपरिवुडा महयाहय-नट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-तालतुडिय-घण-मुइंग-पडुप्पवादियरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणी विहरइ । इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणी-ओभोएमाणी पासइ।।
कालीदेवी-पद १०. उस काल और उस समय चमरचञ्चा राजधानी में काली नाम
की देवी थी। वह कालीवतंसक भवन में, काल सिंहासन पर, चार हजार सामानिक, सपरिवार चार महत्तरिकाओं, तीन परिषदों, सात अनीकों (अश्व, गज, रथ, पदाति, वृषभ, गन्धर्व, नाट्य) सात अनीकाधिपतियों, सोलह हजार आत्मरक्षक देवों तथा अन्य अनेक कालीवंतसक भवनवासी, असुरकुमार देवों और देवियों के साथ, उनसे परिवृत थी। वह महान आहत नाट्य, गीत, वादित्र, तन्त्री, तल, ताल, तूरी, धन-मृदंग--इनके पटु प्रवादित स्वरों के साथ दिव्य भोगार्ह भोगों को भोगती हुई विहार कर रही थी। उस समय वह इस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप द्वीप को अपने विपुल अवधि ज्ञान द्वारा जानती हुई पुन: पुन: देख रही थी।
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