Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 425
________________ नायाधम्मकहाओ अहो णं भंते! काली देवी महिड्डिया महज्जुइया महब्बला महायसा महासोक्खा महाणुभागा ॥ ३९९ १४. कालीए णं भंते! देवीए सा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभागे किण्णा तद्धे ? किण्ण पत्ते ? किण्णा अभिसमण्णागए? भगवओ उत्तरे काली-पदं १५. गोयमाति! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं क्यासी एवं खलु गोयमा तेणं कातेगं तेणं समएणं इहेव जंबूद्दीने दीवे भारहे वासे आमलकप्पा नाम नवरी होत्या-वष्णओ। अंबसालवणे चेइए। जियसत्तू राया ।। १६. तत्थ णं आमलकप्पाए नयरीए काले नामं गाहावई होत्या -- अड्ढे जाव अपरिभूए ॥ १७. तस्स णं कालस्स गाहावइस्स कालसिरी नामं भारिया होत्या -- सुकुमाल - पाणिपाया जाव सुरूवा ।। १८. तस्स णं कालस्स गाहावइस्स धूया कालसिरिए भारियाए अत्तया काली नाम दारिया होत्या - बडा बढकुमारी जुण्णा जुण्णकुमारी पहियपुयत्चणी निब्विण्णवरा वरमपरिवज्जिया वि होत्या ।। -- काली पव्वज्जा पदं १९. तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए आइगरे तित्थगरे सहसंबुळे पुरिसोत्तमे पुरिससीडे पुरिसवरपुंडरीए पुरिसवर गंधहत्थी अभवदए चक्सुदाए भग्गदए सरणदए जीवदाए दोवो ताणं सरणं गई पड़ा धम्मवरभाउरंत चक्कबड़ी अप्पहियवरनाणदंसणारे विपच्छउमे अरहा जिगे केवली जिणे जाणए तिणे तार मुत्ते मोय बुद्धे बोहए सव्वण्णू सव्वदरिसी नवहत् समचउरंससंठाणसंठिए बज्जरसहनारायसंघपणे जल्लमल्लकलंकसेयरहियसरीरे सिवमलमरुपमणतमवस्त्रयमव्वाबाहमपुणरावत्तमं सिद्धिगणामधेयं ठाणं संपाविउकामे सोलसहि समणसाहस्सीहिं अट्ठत्तीसाए अज्जियासाहस्सीहिं सद्धिं संपरिवुडे पुव्याणुपुष्यिं चरमाणे गामाणुगामं इज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे आमलकप्पाए नयरीए बहिया अंबसालवणे समोसढे । परिसा निग्गया जाव पज्जुवासइ ।। Jain Education International दूसरा श्रुतस्कन्ध, प्रथम वर्ग सूत्र : १३-१९ गौतम! वह शरीर में चला गया। शरीर में अनुप्रविष्ट हो गया । यहां कूटागारशाला का दृष्टान्त ज्ञातव्य है । अहो भन्ते! काली देवी महान ऋद्धि महान द्युति, महान बल महान यश, महान सुख, और महान अनुभाग सम्पन्न है। १४. भन्ते! काली देवी को वह दिव्य देवर्द्धि, दिव्य देवसुति, दिव्य 'देवानुभाग कैसे उपलब्ध हुआ? कैसे प्राप्त हुआ? कैसे अभिसमन्वागत हुआ? भगवान के उत्तर के अन्तर्गत काली पद १५. गौतम ! श्रमण भगवान महावीर ने भगवान गौतम को आमन्त्रित कर इस प्रकार कहा--गौतम! उस काल और उस समय इसी जम्बूद्वीप द्वीप और भारतवर्ष में आमलकल्पा नाम की नगरी थी - वर्णक । उसमें आम्रशालवन चैत्य था । जितशत्रु राजा था। १६. उस आमलकल्पा नगरी में 'काल' नाम का गृहपति था, वह यावत् अपराजित था। १७. उस 'काल' गृहपति के कालधी नाम की भार्या थी। वह सुकुमार हाथ-पावों वाली यावत् सुरूपा थी। १८. उस काल गृहपति की पुत्री और कालश्री भार्या की आत्मजा 'काली' नाम की बालिका थी । वह वड्डा, वड्ड कुमारी, जीर्णा, जीर्ण कुमारी, श्लथ, जघन और स्तनवाली, वर से ( पति को पाने की दृष्टि से) उदासीन और दर से परिवर्जित भी थी। काली का प्रव्रज्या पद १९. उस काल और उस समय, धर्म के आदिकर्त्ता तीर्थंकर, स्वयं संबुद्ध, पुरुषोत्तम पुरुष सिंह, पुरुष वर- पुण्डरीक, पुरुष वर- गन्धहस्ती, अभयदाता, चक्षुदाता, मार्ग दाता, शरण दाता, जीवन-दाता, द्वीप, त्राण, शरण, गति, प्रतिष्ठा, धर्म के प्रवर चातुरन्त चक्रवर्ती, अप्रतिहत प्रवर ज्ञान दर्शन के धारक व्यावृत्त-छद्म अर्हतु जिन, केवली, स्वयं ज्ञाता, दूसरों को ज्ञान देने वाले, स्वयं तीर्ण, दूसरों को तारने वाले, स्वयं मुक्त, दूसरों को मुक्ति देने वाले, स्वयं बुद्ध, दूसरों को बोध देने वाले, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, नौ हाथ ऊँचाई वाले, समचतुरस्र संस्थान से संस्थित, वज्रऋषभ नाराच संहनन वाले, जल्ल, मल, कलंक और स्वेद से रहित शरीर वाले, शिव, अचल, अरुण, अनन्त, अक्षय, अव्याबाध, पुनरावृत्ति रहित, सिद्धिगति नामक स्थान को संप्राप्त करने के इच्छुक, पुरुषादानीय अर्हत पार्श्व अपने सौलह हजार श्रमणों और अड़तीस हजार आर्याओं के साथ उनसे परिवृत हो, क्रमश: संचार करते हुए, ग्रामानुग्राम परिव्रजन करते हुए, सुखपूर्वक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480